आचार्य सुधांशु जी महाराज के जन्मदिवस पर आयोजित सनातन संस्कृति जागरण महोत्सव
संस्कृति,सेवा और समर्पण के प्रतीक हैं आचार्य सुधांशु जी महाराजस्वामी चिदानन्द सरस्वती
नई दिल्ली। आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज के पावन जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर एक भव्य सनातन संस्कृति जागरण महोत्सव का आयोजन हुआ। यह महोत्सव सनातन संस्कृति के मूल्यों को जन-जन तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम है। कार्यक्रम का शुभारंभ वेद मंत्रों,दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।देश-विदेश से पधारे पूज्य संतों,विद्वानों और श्रद्धालुओं ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से इस महोत्सव को दिव्यता और गरिमामय बना दिया। संतों ने सनातन धर्म की शाश्वत शिक्षाओं को जीवन में उतारने,भारतीय संस्कृति से जुड़ने, गौरवशाली परंपराओं को जानने और राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनने का प्रेरणादायक संदेश दिया गया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आचार्य सुधांशु जी महाराज ने आत्मज्ञान की राह पर स्वयं चलकर उसे हजारों-लाखों जिज्ञासुओं के लिये सुलभ बनाया और अपने जीवन को सेवा,संस्कार और सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु समर्पित कर दिया। आचार्यश्री का जीवन एक जीती-जागती गीता है,कर्म,ज्ञान और भक्ति के अद्भुत समन्वय का साक्षात स्वरूप।उनके उपदेशों में जहाँ एक ओर सनातन धर्म की गहराई है, वहीं दूसरी ओर वर्तमान युग की समस्याओं का समाधान भी है। वे आधुनिक जीवन की चुनौतियों को समझते हुए परंपरा और प्रगति के बीच सेतु का कार्य कर रहे हैं। आचार्य श्री ने धर्म को मंदिरों की दीवारों तक सीमित न रखते हुए उसे घर-परिवार,और समाज के प्रत्येक कोने तक पहुँचाया है।उनके विश्व जागृति मिशन के माध्यम से जो भी सेवा कार्य हो रहे हैं। चाहे निर्धन बच्चों की शिक्षा हो,नारी सशक्तिकरण हो या चिकित्सा सेवा हर क्षेत्र में उन्होंने अद्भुत कार्य किया। आज जब हम भोगवादी संस्कृति और पर्यावरणीय संकटों के युग में जी रहे हैं,तब ऐसी शिक्षाओं की आवश्यकता है जो धर्म के साथ धरती की चिंता करें,जो पूजा के साथ प्रकृति का पूजन करें,और जो केवल आत्मा की मुक्ति ही नहीं,समाज की उन्नति की भी बात करें।उनके सान्निध्य में केवल साधना नहीं होती,बल्कि “संस्कार निर्माण” भी होता है।जियो तो प्रभु के लिये,सोचो तो राष्ट्र के लिये,और कर्म हो मानवता के लिये यह संदेश वे अपने गुरूकुलों के माध्यम से युवाओं को दे रहे हैं।स्वामी जी ने आचार्य सुधांशु जी और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा और अंगवस्त्र भेंट कर उनका अभिनन्दन किया।