34दिवसीय श्री राम कथा वट सावित्री पर्व के अवसर पर नारी शक्ति को समर्पित
वट सावित्री पर्व सनातन संस्कृति,परिवार और प्रकृति को समर्पित-स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में आयोजित श्री राम कथा का 34वां दिन वट सावित्री पर्व और नारी शक्ति को समर्पित किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण बचाने के लिए यमराज से प्रार्थना की,जो नारी की दृढ़ता,विश्वास और त्याग का अद्भुत उदाहरण है।वट वृक्ष के प्रति श्रद्धा प्रकृति के प्रति आदर का प्रतीक है, साथ ही यह जीवन और प्रकृति के अटूट संबंध को दर्शाता है। वृक्ष,जीवन दाता हैं,वट सावित्री पर्व यह संदेश देता है कि प्रकृति के संरक्षण के बिना हमारा अस्तित्व असंभव है। स्वामी जी ने कहा कि नारी,शक्ति वह आधार है जो परिवार को मजबूत करती है,संस्कारों को जीवित रखती है,और प्रकृति के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाती है।वट सावित्री के व्रत और पूजा के माध्यम से नारी शक्ति ने सदियों से परंपराओं को संजोया है,जो आज भी हमें आध्यात्मिक और सामाजिक दिशा प्रदान कर रही है।नारी,परिवार की जीवन धारा है ,वह संस्कारों की संरक्षक और प्रकृति की संवर्द्धक भी है।व्रत,त्योहार और परंपराएं नारी के माध्यम से परिवार में सजीव रहते हैं।वे अपनी आस्था,सेवा और तपस्या से सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन बनाने हेतु महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।नारी शक्ति अपने सपनों का बलिदान कर अपनों के लिए जीती है।वट सावित्री पर्व एक संकल्प है,अपने संस्कारों, अपने परिवार और अपनी प्रकृति को अक्षुण्ण बनाए रखने का।नारी वह शक्ति है जो संस्कृति को संजोती है,व्रत से ऊर्जा देती है और अपने आचरण से समाज को दिशा देती है।कथाव्यास संत मुरलीधर जी ने आज श्रीराम कथा में माता सीता के चरित्र और उनके त्याग,धैर्य और भक्ति की गाथाएँ सुनाई,जो आज के युग की नारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। श्रीराम जी और माता सीता के आदर्श परिवार की स्थापना नारी शक्ति के समर्पण के बिना संभव नहीं थी।स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने सभी भक्तों व श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे हर वर्ष कम से कम दो पौधों का रोपण,संरक्षण और संवर्द्धन करें।हर परिवार को अपने सदस्यों की संख्या के अनुसार पौधारोपण अवश्य करना चाहिए,ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ, हरित और सुरक्षित पर्यावरण दे सकें। यह प्रकृति सेवा ही सच्ची देश सेवा और धर्म सेवा है।