सच्ची भक्ति वही है जो सेवा में बदल जाए-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। भारत की सनातन संस्कृति अनादि और अनन्त है।इसकी आत्मा में जो तत्व समाहित हैं वह हैं धर्म,करुणा,सेवा,सत्य,और भक्ति। इन तत्वों का साक्षात् रूप हैं श्री हनुमान जी। हनुमान जी,सनातन जीवनमूल्यों के जीवंत प्रतीक हैं।उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि भक्ति केवल मंदिरों तक सीमित नहीं है बल्कि वह सेवा, त्याग और संकल्प के रूप में प्रकट होती है।श्री हनुमान जी,अष्टसिद्धियों और नव निधियों के दाता,रामभक्त शिरोमणि, संकट मोचन,अजर-अमर,और सर्वज्ञ है। वे पराक्रम के अवतार हैं और दास्य भाव की चरम परिणति हैं।प्रभु श्रीराम के प्रति उनका समर्पण पूर्णतःनिःस्वार्थ और अहंकारहीन था। हनुमान जी केवल बलवान ही नहीं,अत्यंत ज्ञानी भी है।वे चारों वेदों और नौ व्याकरणों के ज्ञाता है। इतना सामर्थ्य होते हुए भी वे अत्यंत विनम्र थे। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हनुमान जन्मोत्सव केवल एक पर्व नहीं,एक आत्मिक जागरण का अवसर है। यह दिन हमें स्मरण कराता है कि जीवन में कितनी भी बाधाएँ क्यों न आएँ,अगर हमारे भीतर भक्ति और सेवा की लगन है,तो हम किसी भी संकट को पार कर सकते हैं।हनुमान जन्मोत्सव के माध्यम से हम न केवल हनुमानजी के जन्म की लीला को याद करे,बल्कि यह भी संकल्प ले कि हम उनके गुणों को आत्मसात कर समर्पण और सेवा के भाव से जीवन में आगे बढ़ते रहे। हनुमान जी की भक्ति,कर्मयोग से युक्त थी। वे हर क्षण अपने आराध्य की सेवा में तत्पर रहते। उन्होंने कभी अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया,केवल आवश्यकता पड़ने पर, धर्म की रक्षा हेतु उसका उपयोग किया और संदेश दिया कि सच्ची भक्ति वह है जो जीवन को सेवा में बदल दे। स्वामी जी ने कहा कि आज का युवा वर्ग अनेक दिशाओं में भटक रहा है,आत्मविश्वास की कमी,सामाजिक दबाव,डिजिटल व्यसन,और जीवन के उद्देश्य की अस्पष्टता। ऐसे में हनुमान जी के जीवन से युवा वर्ग को कई महत्वपूर्ण प्रेरणाएँ मिलती हैं। जब जामवंत ने उन्हें उनकी शक्ति का स्मरण कराया,तब उन्होंने समुद्र लांघा। यह युवाओं के लिए संकेत है कि अपनी शक्ति को पहचानो।आज जब संबंध क्षणभंगुर हो रहे हैं,हनुमान जी की श्रीराम जी के प्रति निष्ठा हमें सिखाती है कि समर्पण ही जीवन का मूल हैं।हनुमान जी का प्रत्येक कार्य किसी न किसी के हित के लिए होता था। आज के युवाओं में अगर सेवा और करुणा का बीज रोपित हो जाए,तो समाज में स्वर्णिम परिवर्तन संभव है। हनुमान जी जैसे महापुरुषों की शिक्षाओं को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। वे संकटमोचन हैं,उनका नाम लेने मात्र से भय दूर होता है,मन में बल का संचार होता है। हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर परमार्थ निकेतन में तीन दिवसीय रिट्रीट का आयोजित किया गया।