हरिद्वार। भेल उपनगरी मे मकान भेलकर्मियों की सुविधा के लिए बनाये गए थे। एक समय था कि जब भेल मे कर्मचारियों को आवासीय सुविधा प्राप्त करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता था। खैर उस वक्त भेल कारखाने मे कर्मचारियों की अच्छी खासी संख्या हुआ करती थी। ऐसे मे मकान प्राप्त करना टेडी खीर ही था। और बाहरी व्यक्ति को मकान नही दिया जाता था। समय के साथ नियमों मे बदलाव व शिथिलता आयी और बाहरी व्यक्तियों जिसमें राज्य सरकार के कर्मचारियों को मकान देना शुरू कर दिया,जिसका नतीजा बेहद खराब रहा। जिस राज्य कर्मचारी ने एक बार भेल से मकान प्राप्त कर लिया फ़िर उसने उसे नही छोड़ा। जिससे भेल प्रबंधिका को अच्छी खासी आर्थिक हानि तो उठानी पड़ी साथ ही परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। जिसमें सबसे अधिक राज्य के पुलिसकर्मियों के कारण भेल के मकान खाली नही हो सके और भेल को रेवेन्यू लॉस हुआ। जिसके लिए भेल का प्रबंध तंत्र पूरी तरह जिम्मेदार रहा। कुछ ऐसे भी मकान है,जो व्यक्ति आवंटन के समय राज्य सरकार के मंत्री का पीआरओ था,मंत्री ही हट गए तो उसके पीआरओ की भी सेवाएं स्वत समाप्त हो गई,पर वह दो वषोॅ से सरकारी रेट के मकान की सुविधा प्राप्त कर रहा है। जबकि उसको मकान का कॉमर्शिल् दर से किराया देना होता है पर,अंधेरगर्दी चली आ रही है,जिसका खामियाजा भेल के रेवेन्यू विभाग भुगत रहा है। यही हाल पुलिसकर्मियों को आवंटित मकानों का है। मसलन आवंटित किसी को रह कोई और रहा जिसका राज्य सरकार से कोई सहोकार नही। भेल के संपदा विभाग को सब मालूम होते हुए भी कार्यवाही से न जाने क्यों घबरा रहा है ?
भेल उपनगरी मे बड़े पैमाने चल रहा उप किरायेदारी का कारोबार
हरिद्वार। भेल उपनगरी मे मकान भेलकर्मियों की सुविधा के लिए बनाये गए थे। एक समय था कि जब भेल मे कर्मचारियों को आवासीय सुविधा प्राप्त करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता था। खैर उस वक्त भेल कारखाने मे कर्मचारियों की अच्छी खासी संख्या हुआ करती थी। ऐसे मे मकान प्राप्त करना टेडी खीर ही था। और बाहरी व्यक्ति को मकान नही दिया जाता था। समय के साथ नियमों मे बदलाव व शिथिलता आयी और बाहरी व्यक्तियों जिसमें राज्य सरकार के कर्मचारियों को मकान देना शुरू कर दिया,जिसका नतीजा बेहद खराब रहा। जिस राज्य कर्मचारी ने एक बार भेल से मकान प्राप्त कर लिया फ़िर उसने उसे नही छोड़ा। जिससे भेल प्रबंधिका को अच्छी खासी आर्थिक हानि तो उठानी पड़ी साथ ही परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। जिसमें सबसे अधिक राज्य के पुलिसकर्मियों के कारण भेल के मकान खाली नही हो सके और भेल को रेवेन्यू लॉस हुआ। जिसके लिए भेल का प्रबंध तंत्र पूरी तरह जिम्मेदार रहा। कुछ ऐसे भी मकान है,जो व्यक्ति आवंटन के समय राज्य सरकार के मंत्री का पीआरओ था,मंत्री ही हट गए तो उसके पीआरओ की भी सेवाएं स्वत समाप्त हो गई,पर वह दो वषोॅ से सरकारी रेट के मकान की सुविधा प्राप्त कर रहा है। जबकि उसको मकान का कॉमर्शिल् दर से किराया देना होता है पर,अंधेरगर्दी चली आ रही है,जिसका खामियाजा भेल के रेवेन्यू विभाग भुगत रहा है। यही हाल पुलिसकर्मियों को आवंटित मकानों का है। मसलन आवंटित किसी को रह कोई और रहा जिसका राज्य सरकार से कोई सहोकार नही। भेल के संपदा विभाग को सब मालूम होते हुए भी कार्यवाही से न जाने क्यों घबरा रहा है ?