नहाए-खाए के साथ शुरू हुआ चार दिवसीय छठ का महापर्व

 हरिद्वार। लोक आस्था का महापर्व छठ महापर्व,मंगलवार को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है। चार दिवसीय महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को खरना का प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत छठव्रतियों का 36घंटे का निर्जल उपवास भी शुरू हो जायेगा। इसी क्रम में तीसरे दिन गुरुवार को गंगा घाटों,पोखर,तालाबों पर डूबते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करने के उपरांत,चौथे दिन शुक्रवार को उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करने के साथ ही छठ पर्व का समापन हो जायेगा। इसी के साथ छठ व्रतियों के 36 घंटों का निर्जल उपवास भी संपन्न होगा। तीर्थनगरी हरिद्वार में भी छठ महापर्व का आयोजन धूमधाम से किया जा रहा है। पूर्वांचल उत्थान संस्था के आचार्य उद्धव मिश्रा ने बताया कि छठ महापर्व में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान है. छठ का व्रत महिलाएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं. इस वर्ष यह महापर्व 5 से लेकर 7नवंबर तक मनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि चार दिन तक चलने वाले छठ पर्व की आज से शुरुआत हो रही है। छठ पर्व से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है। आचार्य उद्धव मिश्रा ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार,कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में होता है,इसलिए सूर्यदेव की विशेष उपासना की जाती है. ताकि स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान ना करें। षष्ठी तिथि का सम्बन्ध संतान की आयु से होता है, इसलिए सूर्य देव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती है। नहाए-खाए छठ महापर्व के पहले दिन की विधि होती है,जिसमें व्रती अपने शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए इस प्रक्रिया का पालन करते हैं। यह दिन मुख्यतः शुद्धता और सरल भोजन के लिए होता है। आचार्य उद्धव मिश्रा ने बताया कि छठ में व्रती पहले दिन सुबह- सुबह किसी पवित्र नदी,तालाब या घर में स्नान करें हैं। पानी में थोड़ा सा गंगाजल जरूर मिला लें। स्नान के बाद पूरे घर की विशेष रूप से रसोई की सफाई की जाती है। रसोई को शुद्ध और पवित्र रखा जाता है। इसके बाद व्रती पूरे मन और आत्मा से छठ पूजा के नियमों का पालन करने का संकल्प लेते हैं। नहाए-खाए के दिन व्रती सिर्फ सादा,सात्विक भोजन करते हैं। आमतौर पर चावल,चने की दाल और कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। आचार्य उद्धव मिश्रा ने बताया कि तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्यछठ पर्व में तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। साथ में विशेष प्रकार का पकवान ठेकुवा और मौसमी फल चढ़ाया जाता है.अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है। चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है।