संस्कृत विद्यालयों के प्रबंधकों ने किया संस्थाओं में बाहरी हस्तक्षेप का विरोध

 हरिद्वार। संस्कृत विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के प्रबंधकों ने बैठक कर सरकार द्वारा थोपी जा रही योजनाओं का विरोध किया। खड़खड़ी स्थित निर्धन निकेतन आश्रम में आश्रम में परमाध्यक्ष स्वामी ऋषि रामकृष्ण महाराज की अध्यक्षता में हुई बैठक में प्रबंधकों ने संस्कृत विद्यालयों को पूर्व की भांति विद्यालयों की पैतृक संस्थाओं द्वारा ही संचालित करने की मांग की गयी। प्रबधंकों का कहना है कि संस्कृत शिक्षण संस्थान मूलरूप से धर्माचार्यों,संतों,अखाड़ों आदि द्वारा स्थापित 1860 के सोसाइटी एक्ट के तहत संचालित हो रहे हैं। इनमें बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा। राज्य गठन के 14वर्ष बाद संस्कृत शिक्षा अधिनियम 2014को बिना विद्यालय के प्रबंधकों की सहमति के जबरन लागू करना तुगलकी फरमान है। प्रशासन की इस योजना से विद्यालयों में विवाद की स्थिति पैदा होनी शुरू हो गयी है। सभी ने एक स्वर से योजना का विरोध करते हुए संस्कृत विद्यालय,महाविद्यालय प्रबंधक एसोसिएशन के अध्यक्ष व सचिव को कानूनी एवं विभागीय कार्यवाही करने के लिए अधिकृत किया। निर्धन निकेतन आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी ऋषि रामकृष्ण महाराज ने कहा कि सरकार के निर्णय के एकजुट होकर विरोध किया जाएगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के रहने खाने की व्यवस्था संस्थाओं की और से की जाती है। संस्थाओं में बाहरी हस्तक्षेप का विद्यार्थियों पर खराब असर होगा। सरकार के निर्णय के विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह,मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ज्ञापन भेजा गया है। शासन प्रशासन के समक्ष भी विरोध दर्ज कराया जाएगा। जरूरत पड़ी तो न्यायालय में याचिका भी दायर करेंगे।