31अक्टूबर को ही दीपावली मनाना तर्कसम्मत व शास्त्र सम्मत होगा- श्रीमहंत नारायण गिरि
हरिद्वार। दीपावली किस दिन मनायी जाए,को लेकर जारी असमंजस के बीच श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर ,श्रीपंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि जैसी स्थिति इस बार दीपावली पर्व पर बन रही है। वैसी ही स्थिति वर्ष 1963 में भी बनी थी। तब भी दीपावली का पर्व पहले दिन ही मनाया गया था। अतः इस वर्ष भी दीपावली का पर्व 31 अक्टूबर को ही मनाना तर्कसंगत व शास्त्रसंगत होगा। 1 नवंबर को रात्रि में अमावस्या तिथि ही नहीं है,तो उस दिन दीपावली का पर्व मनाना उचित नहीं होगा। श्रीमहंत नारायण गिरी ने बताया कि वर्ष 1963 में 16 अक्टूबर को अमावस्या सायंकाल 4ः15 पर प्रारंभ हुई थी एवं 17अक्टूबर को सायंकाल 6ः13 पर समाप्त हुई थी। सूर्यास्त 5ः29 पर हुआ था। इसलिए दीपावली 16 अक्टूबर को ही मनायी गई थी। क्योंकि उस दिन ही पूरी रात्रि अमावस्या थी। अगले दिन रात्रि में अमावस्या का योग नहीं था। प्रदोष में अमावस्या व्याप्त नहीं थी और अर्धरात्रि में अमावस्या नहीं थी। 2024 में अमावस्या तिथि 31अक्टूबर को दोपहर के बाद 3 बजकर 52 मिनट पर शुरू होकर 1 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। 1 नवंबर को सूर्यास्त 5.32 पर होगा और अमावस्या का अंत 6.16 पर होगा। इस वर्ष भी पहले दिन यानि 31अक्टूबर को ही रात्रि में अमावस्या तिथि है। प्रदोष व अर्ध रात्रि में भी अमावस्या व्याप्त है। श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने बताया कि 1963 के इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि परंपरा के अनुसार 31अक्टूबर को ही दीपावली शास्त्रसम्मत है। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि आज से 60 साल पहले पंचांग की एक एक चीज हाथों से की जाती थी न कि आज की तरह कॉपी पेस्ट की जाती थी। आज देश की परंपराओं को खण्डित करने का षड्यंत्र चल रहा है और इसी कारण अधिकांश पर्व दो-दो दिन मनाए जाने लगे हैं,जो बहुत ही खतरनाक है। इस पर चुप्पी साधे रखना और भी खतरनाक होगा। ऐसे षडयंत्र का विरोध करना होगा,तभी देश की परम्पराएं बनी रहेंगी और सनातन धर्म को मजबूत किया जा सकेगा।