रामायण मानव जीवन का आदर्श और संस्कृति का दर्शन

 हरिद्वार। श्री गंगा भक्ति आश्रम के परमाध्यक्ष श्रीमहंत स्वामी कमलेशानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि रामायण मानव जीवन का आदर्श और संस्कृति का दर्शन है,जिसके पठन-पाठन एवं श्रवण मात्र से व्यक्ति का जीवन सुधर जाता है। रामायण ही सनातन संस्कृति का दर्शन है जिसको जीवन की व्यवहारिकता में उतारते ही साधक नर से नारायण स्वरूप हो जाता है। वे आज उत्तरी हरिद्वार में गंगा भक्ति आश्रम के संस्थापक अपने पूज्य गुरुदेव साकेतवासी स्वामी राघवानंद सरस्वती जी महाराज की तृतीय पुण्यतिथि के उपलक्ष में आयोजित श्रीरामायण के अखंड पाठ की पूर्णाहुति के अवसर पर भक्तों को गुरुकृपा के प्रसाद से पुष्पित एवं पल्लवित होने का आशीर्वाद दे रहे थे। श्रीरामायण जी के प्रमुख प्रसंगों का भावार्थ एवं भगवान राम द्वारा स्थापित किए गए आदर्श एवं मर्यादाओं को अपने जीवन में उतारने का आवाहन करते हुए उन्होंने कहा कि माता-पिता और गुरु की आज्ञा का सदैव पालन करना चाहिए,यही तीन व्यक्ति ऐसे हैं जो दिल से आशीर्वाद देते हैं जिससे व्यक्ति महानता को प्राप्त करता है। नर से नारायण बनने का मूलमंत्र देते हुए उन्होंने कहा कि माता-पिता की आज्ञा पाकर ही राजकुमार राम बन को गए और 14वर्ष बाद भगवान राम बनकर अयोध्या लौटे। यदि वे माता-पिता की आज्ञा न मानते तो अयोध्या के राजा तो बन सकते थे लेकिन राजा राम से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम बनने के लिए माता-पिता की आज्ञा का पालन ही काम आया। उन्होंने सभी भक्तों का आवाहन किया कि परिवार में संपत्ति बंटवारे के लिए आपस में कभी न लड़ें,संयम रखें तो उम्मीद से अधिक मिलता है। रामायण को जीवन जीने की कला सिखाने वाला ग्रंथ बताते हुए उन्होंने सभी भक्तों को रामायण के भोग का प्रसाद देकर उनके सुखमय जीवन एवं उज्जवल भविष्य की कामना की। इस अवसर पर पूज्य गुरुदेव साकेतवासी स्वामी राघवानंद सरस्वती जी महाराज के सैकड़ो की संख्या में अनुयायी,भक्त तथा बड़ी संख्या में स्थानीय गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे। कल (आज) संत सम्मेलन एवं श्रद्धांजलि सभा का आयोजन होगा।