सरस काव्य गोष्ठी में कवियों ने बांधा समा

 


हरिद्वार। उत्तराखण्ड शिक्षा विभाग की पूर्व उप निदेशक पुष्पारानी वर्मा के मणी टावर दादूबाग कनखल स्थित आवास पर सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें कवियों ने अपनी-अपनी विधाओं में काव्य पाठ कर ख़ूब वाहवाही लूटी। वाग्देवी मां शारदा के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन तथा कुसुमांजलि के उपरान्त कंचन प्रभा गौतम की वाणी वंदना-मेरे कंठ में जो भी स्वर है।,वो तेरा ही है वरदान के साथ शुरू हुई गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए दीपशिखा की अध्यक्ष डा.मीरा भारद्वाज ने ईश्वर का प्रतिरूप मां बच्चे का संसार है,कविता प्रस्तुत कर मां की महिमा का गुणगान किया,तो डा.सुशील कुमार त्यागी अमित ने वर्षा गीत जीवन राग सुनाए बादल,फिर से मिलने आए बादल के साथ पावस ऋतु का स्वागत किया। चेतना पथ के सम्पादक व साहित्यकार अरुण कुमार पाठक ने अपनी ग़ज़ल कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है,रोज़ मिलते हैं,मगर बात नहीं होती है पेश की,तो पूर्व हिंदी अधिकारी डा.अशोक गिरि ने मरुभूमि को चमन बनने दो,हे भाषा के विद्वानों के साथ हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का आह्वान किया। जबकि कंचन प्रभा गौतम ने जीवन हो मधुरम,सपना मधुरम,अधरों से निकले वो स्वर मधुरम के साथ भक्तिधारा प्रवाहित की। नृत्यांगना व कवियत्री वैष्णवी झा ने बहती गंगा की धारा सी,निर्मल मन मैं कर जाऊं के साथ मां गंगा को नमन किया। डा.पुष्पा रानी वर्मा ने शून्य से शिखर छूने की ललक,उनकी आंखों में बढ़ रही,चंगेज़ी हवस के साथ देश के वर्तमान राजनीतिक परिवेश पर तीखे बाण चलाये। ऐसा चित्र विचित्र समय का,आओ तुम्हें बताएं कहकर डा.विजय कुमार त्यागी ने संयमित जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। देवेन्द्र मिश्र ने आपसे जो प्यार पाया,है मेरे दिल में समाया के साथ अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। शिक्षिका,चित्रकार व युवा कवियत्री वृंदा शर्मा ने शाश्वत हो दीप्ति जगती का आधार हो, अक्षिता के ओज को विनीत स्वीकार हो के साथ प्रकृति को आत्म निवेदित किया। ग्लैम गाइडेंस ब्यूटी पीजेंट रह चुकीं,युवा कवियत्री कवीशा वर्मा ने इतनी ताक़त रखते हैं, इंसान की कीमत लगा दे,इतनी इज््ज़त रखते हैं,कि दुनिया घुमा डालें सुना कर शब्द महिमा का बखान किया।