विश्वबन्धुत्व एवं वसुधैव कुटुम्बकम की भावना ही भारतीय संस्कृति को पहचान दिलाती है-डॉ.चौहान

 हरिद्वार। विश्व पटल पर भारत एवं भारतीय ही मानवीय मूल्यों के सबसे जीवन्त उदाहरण है। भारतीय संस्कृति मे इसके व्यापक प्रमाण उपलब्ध है। विश्वबन्धुत्व एवं वसुधैव कुटुम्बकम की भावना ही भारतीय संस्कृति को विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति के रूप मे पहचान दिलाती है। गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय के योग एवं शारीरिक शिक्षा संकाय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.शिवकुमार चौहान ने रिसोर्स पर्सनल के रूप मे यह विचार प्रकट किये। कालीदास संस्कृत एकेडमी,उज्जैन तथा महारानी लक्ष्मीबाई राजकीय गर्ल्स महाविद्यालय,इन्दौर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित नेशनल सेमीनार एवं व्याख्यानमाला शीर्षक कला स्पन्दन मे मुख्य वक्ता के रूप मे विचार व्यक्त किये। डॉ.शिवकुमार चौहान ने कहॉ कि सम्पूर्ण विश्व मे मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता एवं जवाबदेई का सजीव उदाहरण भारतीय ही है। आर्थिक एवं वैश्विक रूप से सम्पन्न देशों मे हयूमन राईट के नाम पर अनेक नियम है,लेकिन मनुष्य को मनुष्य बने रहने की प्रेरणा किसी मानक अथवा नियम के बिना केवल भारतीय संस्कृति मे ही मिल सकती है। संयुक्त परिवार का चलन भारतीय संस्कृति का एक छोटा सा उदाहरण है,जहां परिवार के सदस्यों को अपने दायित्वों एवं कर्तव्यों का उपयोग करते हुये दूसरे सदस्यों के अधिकारो का संरक्षण एवं पोषण करने मे निपुण बनने का अवसर मिलता है। नैतिक मूल्यों मे आ रही गिरावट के चलते अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुये डॉ.चौहान ने कहॉ कि एकल परिवार का चलन एवं व्यक्तिगत हितों को प्राथमिकता देने के चलते मनुष्य अनेक मनोवैज्ञानिक विकारों से ग्रसित हो रहा है। जिसका समाधान भारतीय संस्कृति के अनुरूप आचरण की पवित्रता बनाने से ही दूर हो सकता है। कार्यक्रम का संचालन ड्राईंग एवं पेन्टिंग विभागाध्यक्ष प्रो.कुमकुम भारद्वाज द्वारा किया गया। इस अवसर पर कालीदास संस्कृत एकेडमी,उज्जैन के निदेशक डॉ.गोविन्द गांधी,निशा जैन,गरिमा शर्मा,कला एवं संस्कृति के विद्वान एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे।