निर्जला एकादशी व्रत से होती है पुण्य की प्राप्ति-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

 


हरिद्वार। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार के तत्वावधान में भूपतवाला स्थित भारतमाता पुरम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने निर्जला एकादशी का महत्व बताते हुए कहा कि जब वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिए। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् इसका वर्णन सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान् वेदव्यास करेंगे। वेदव्यास ने बताया कि कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है। द्वादशी को स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा करें। इसके बाद पहले ब्राह्मणों को भोजन कराएं। अन्त में स्वयं भोजन करें। यह सुनकर भीमसेन बोले राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती,द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव यह सभी एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा एकादशी को भोजन नहीं करने को कहते हैं। लेकन मुझसे भूख सहन नहीें होती। भीमसेन की बात सुनकर वेदव्यास ने कहा यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना। भीमसेन बोले मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जाता,तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है। अतः जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है। इसलिए महामुनि मैं पूरे वर्ष भर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ। ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा। व्यासजी ने कहा-भीम ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर,शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो,उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो। उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें। अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। एकादशी को सूर्याेदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्याेदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है। इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल,फल,वस्त्र,शैयया,गौ और सुवर्ण इत्यादि यथा शक्ति दान करे। इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें। वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं,उन सबका फल निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। शास्त्री ने बताया जिन्होंने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है। निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करना चाहिए। जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है,वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है। चतुर्थ दिवस की कथा में ध्रुव चरित्र,प्रहलाद चरित्र एवं गजेंद्र मोक्ष की कथा का श्रवण करते हुए सभी भक्तों ने भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया। इस अवसर पर मुख्य यजमान रामदेवी गुप्ता, रामकुमार गुप्ता,रजनी कुरेले,राजीव कुरेले,रागनी गुप्ता,दीपक गुप्ता,नेहा गुप्ता,सुधीर गुप्ता, कल्पना गुप्ता,अजय गुप्ता,निम्मी गुप्ता,विजय गुप्ता,पुष्पा देवी कुरेले, अशोक कुरेले, शालिग्राम गुप्ता,रामकुमारी गुप्ता,संजीव कुमार गुप्ता,अंकिता गुप्ता,हरिमोहन बडोनिया,गीता बडोनिया, मुकुंदीलाल गुप्ता,मुनिदेवी गुप्ता,धर्मेंद्र गुप्ता,गायत्री गुप्ता,सुरेंद्र बल्यिया,सुनीता बल्यिया,पंडित प्रकाश चंद्र जोशी,पंडित मनोज कोठियाल आदि ने भागवत पूजन कर कथाव्यास से आशीर्वाद लिया।