आईआईएम काशीपुर में स्कॉलर्स कॉन्क्लेव का समापन,
देहरादून। भारतीय प्रबंधन संस्थान काशीपुर ने रविवार को तीन दिवसीय उत्तर भारत के सबसे बड़े स्कॉलर्स कॉन्क्लेव, प्रबंधन शिक्षा और अनुसंधान संगोष्ठी (एमईआरसी) का समापन तीन सर्वश्रेष्ठ शोध पत्रों की घोषणा के साथ किया। एमईआरसी, आईआईएम काशीपुर द्वारा प्रबंधन शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में ज्ञान,नवाचार और सहयोग का जश्न मनाने के लिए शुरू किया गया एक स्कॉलर्स कॉन्क्लेव है। यह एक गतिशील मंच है, जहां देश भर के प्रतिभाशाली स्कॉलर अपने अभूतपूर्व शोध को साझा करने, विचारों का आदान-प्रदान करने, नवीनतम शोध रुझानों को समझने और सार्थक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एकत्रित होते हैं।एमईआरसी के चौथे संस्करण में आईआईएम काशीपुर को मिले 720शोध पत्रों की जांच के बाद 300 को फाइनल राउंड के लिए चुना गया। प्रतिभागियों में 50फीसदी महिलाएं थीं। 300शोध पत्रों की गहन जांच के बाद निर्णायक मंडल ने तीन सर्वश्रेष्ठ शोध पत्रों का चयन किया।मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी) इलाहाबाद की श्रेया श्रीवास्तव को सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र का पुरस्कार मिला। आईआईटी कानपुर के मोहम्मद मुजाहिद खान के न्यूजवेंडर पर लिखे पेपर को दूसरा सर्वश्रेष्ठ पेपर चुना गया, जबकि दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वीरेंद्र कुमार के एनआरआई पर लिखे पेपर को सम्मेलन का तीसरा सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र चुना गया। एमईआरसी के संयोजक प्रो.सोमनाथ चक्रवर्ती,डीन (अकादमिक) ने उन्हें प्रमाण पत्र और क्रमशः 25,000 रुपये,20,000रुपये और 15,000रुपये की राशि देकर सम्मानित किया। उन्होंने कहा, “एमईआरसी जूरी के लिए तीन सर्वश्रेष्ठ शोधपत्रों का चयन करना एक कठिन कार्य था, जो नैतिक शोध और उसके मापदंडों के सभी मानदंडों को पूरा करते हों। मैं सर्वश्रेष्ठ शोधपत्र पुरस्कार के लिए विद्वानों को बधाई देता हूं।” उन्होंने आगे कहा, “पिछले दो दिनों में, हमने ऑनलाइन और ऑफलाइन सत्रों और कार्यशालाओं में भाग लिया, जहां शिक्षाविदों और उद्योग के विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों को उनकी शोध में सुधार करने में सहायता करने के लिए शोध पद्धति सहित विभिन्न विषयों पर विद्वानों का मार्गदर्शन किया। एक ओर,आईआईएम बैंगलोर के वित्त के प्रोफेसर,प्रो.संकर्षण बसु,आईआईएम अहमदाबाद से प्रो.नेहारिका वोहरा और यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर,यूएसए के प्रो. जेसन बेनेट थैचर ने सैद्धांतिक पहलुओं पर शोधकर्ताओं को संबोधित किया,जबकि पीडब्ल्यूसी कंपनी के प्रबंध निदेशक डॉ. जय आडवाणी और एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ.अनु बी गुप्ता ने विद्वानों को प्रबंधन उद्योग में अनुसंधान का उपयोग करने के तरीके के बारे में मार्गदर्शन किया। कॉन्क्लेव के मुख्य अतिथि पीडब्ल्यूसी कंपनी के प्रबंध निदेशक डॉ.जय आडवाणी ने अस्थिर प्रबंधन उद्योग में अनुसंधान के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, अनुसंधान और उद्योग को अलग-अलग पहलू माना जाता था,लेकिन विकसित तकनीक के साथ,अब उद्योग को चुनौतियों का समाधान करने या उद्योग की खामियों को ठीक करने के लिए शोधकर्ताओं के समर्थन की आवश्यकता है। कोविड-19 महामारी के बाद,उद्योग डिजिटल उन्नति की राह पर है और शोधकर्ता यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।”शोध की भविष्य की संभावनाओं पर बोलते हुए उन्होंने कहा,‘कई ऑटोमोबाइल, साइबर सुरक्षा, आईटी और अन्य उत्पाद विकसित करने या अपने संचालन को बढ़ाने के लिए अनुसंधान और विकास पर एक दशक का समय और पैसा खर्च कर रहे थे। अकेले बैंगलोर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की 500 से अधिक आरएंडडी इकाइयां हैं। उद्योग को समाधान-उन्मुख अनुसंधान की आवश्यकता है, जो संचालन में सुधार करता है।उन्होंने कहा यह एक ऐसे मंच का समय है जहां शिक्षा-उद्योग सहयोग करते हैं और उद्योग के सामने आज की चुनौतियों का समाधान करते हैं। आईआईएम काशीपुर के डॉक्टोरल प्रोग्राम के अध्यक्ष और एमईआरसी के संयोजक डॉ. सब्यसाची पात्रा ने कहा,‘यह विद्वानों के साथ-साथ आईआईएम काशीपुर के डॉक्टरेट छात्रों के लिए एक समृद्ध सत्र था। उन्होंने जोखिम,अनुसंधान और पारिश्रमिक के बारे में सीखा। उन्होंने कहा मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि इस साल,एमईआरसी ने पिछले साल की तुलना में पेपर सबमिशन में 400ःकी वृद्धि देखी। एमईआरसी एक ऐसा स्थान प्रदान करता है जहाँ सिद्धांतों को चुनौती दी जाती है, कार्यप्रणाली पर बहस की जाती है और नए विचारों का जन्म होता है। प्रथम पुरस्कार श्रेया श्रीवास्तव-मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी) इलाहाबाद।शोध विषय-सक्रियण से आत्मसात तकः सामाजिक और भावनात्मक संकेतों को शामिल करते हुए आवाज के माध्यम से उपभोक्ता-एआई इंटरैक्शन में स्कीमा संतुलन। दूसरा-मोहम्मद मुजाहिद खान-आईआईटी कानपुर शोध विषय-प्रचुरता से कमी तकः वित्तीय रूप से विवश समाचार विक्रेता का एक प्रायोगिक अध्ययनतीसरा-वीरेंद्र कुमार-दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय