संत सम्मेलन के साथ सम्पन्न हुआ स्वामी तुरियानंद जी महाराज का 53वां निर्वाण दिवस


 हरिद्वार। स्वामी तुरिया नंद सत्संग सेवा आश्रम भूपतवाला हरिद्वार में ब्रह्मलीन श्री 1008 स्वामी तुरियानंद जी महाराज का 53वां निर्वाण दिवस गद्दीनशीन स्वामी विवेकानंद गिरी महाराज की संरक्षता में धूमधाम से मनाया गया। निर्वाणदिवस के मौके पर विभिन्न संत महात्माओ ने अपने अपने मुखारविंद से आध्यात्मिक चर्चा करते हुए मानव कल्याण के बारे में बताया। मानव जीवन और उसका लक्ष्य के बारे में उल्लेख करते हुए स्वामी विवेकानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि हमारे धर्म ग्रंथो में धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों को जीवन का अध्याय माना गया है। धर्म का ज्ञान होना जरूरी है तभी कार्य में कुशलता आती है। कार्य कुशलता से ही व्यक्ति जीवन में अर्थ अर्जित कर पता है। काम और अर्थ को धरमपूर्वक भोंगते हुए मोक्ष की कामना करनी चाहिए। इन चार पुरुषार्थों को पाने के लिए काम क्रोध लोभ मोह और अंहकार इन पांच विकारो के त्याग को बहुत महत्व दिया गया है। आज के दौर में इस पर हमें विचार करना है। उन्होंने कहा कि ध्यान से सोचों तो यह पांच काम क्रोध लोभ मोह और अहंकार पूरी तरह से विकार की श्रेणी नहीं आते। जब यह अपनी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं या उनकी अति होती है तभी विकार बनते हैं। अन्यथा उनके बिना मानव अपना सांसारिक जीवन भी नहीं चला पता। अति तो भोजन भी दुखदायी होता है। इच्छा शक्ति के अभाव से पृथ्वी से मुक्त हो पाना संभव नहीं है। क्रोध शक्ति है जो आवश्यकता पड़ने पर मानव को सुरक्षा प्रदान करती है। घर या किसी अवस्था में एक नियम अनुशासन स्थापित करता है। लोभ एक आवश्यकता है जिसके बिना पारिवारिक और सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह कठिन है। मोह मानव को प्रतित्व और मातृत्व के साथ-साथ अन्य रिश्तों के दायित्व जिम्मेदारियां को निभाने निभाने की प्रेरणा देता है। मनुष्य जिस तरह वृत्ति को हम अहंकार कहते हैं उसके अहंकार शब्द का प्रयोग तब किया जाता है जब वह अपनी सीमा का उल्लंघन करती है। चार पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए एक और भी मार्ग बतलाया गया है वह है अध्यात्म का मार्ग अर्थात ध्यान और साधना का मार्ग। ध्यान साधना ही वह मार्ग है जो आध्यात्मिक के लक्ष्य तक पहुंचना है अपने मूल रूप से प्रभु की अनुभूति कराता है। प्रकृति प्रदत्त सोई हुई शक्तियों को जागृत करता है। इस कार्य में चार सद्गुण ज्ञान सहज निर्दोष और सैम सदा सहायक होते हैं किसी भी कार्य साधना के प्रारंभ प्रारंभ प्रारंभ होने करने से पहले उसके प्रति ज्ञान होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि चार गुण मानव को आध्यात्मिक के मार्ग पर ले जाते हैं। और धर्म अर्थ काम और मोक्ष में सहायक होते हैं किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति निर्वेद में संभव नहीं होती है। मार्ग में कई अवरोध आते हैं इसलिए भगवान ने चार अवगुण राग द्वेष निंदा और असत्य को भी इस मानव के मन में डाल दिया। इसलिए हमारे धर्म ग्रंथो ने इन चार अवगुणों को अपने से पूर्णतया मुक्त रखने का संदेश दिया है। सच मानिए यह मानव जीवन में चार सद्गुणों को अपना लेते वह चार अवगुणों को त्याग दें यदि मानव तो आध्यात्मिक उन्नति सहज हो जाएगी। उन्होंने इस दौरान बड़ी संख्या उपस्थित श्रद्धालुओं को कई दोहे और रामचरितमानस की चौपाइयों के माध्यम से सत्य की ओर ले जाने का प्रयास किया। संगत में स्वामी ट्रस्ट के प्रधान ओमप्रकाश अरोड़ा,उप प्रधान प्रवीण बधावन, कोषाध्यक्ष अमित बत्ता,संयुक्त सचिव सुभाष चंद्र मल्होत्रा के अलावा सुदर्शन बजाज एवं बड़ी संख्या में दूर दराज से आये श्रद्धालु लोग शामिल रहे।