वेद में वाणी की बड़ी महिमा,उसी का आधार लेकर राष्ट्र को जागृत किया जाता हैः स्वामी गोविन्द देव गिरि

 सनातन धर्म और राष्ट्रधर्म की प्रेरणा जगाने वाले सबसे बड़े आदर्श छत्रपति शिवाजी हैंः स्वामी रामदेव


हरिद्वार।‘‘छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’’के पाँचवे दिन स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज ने कहा कि मैं यहाँ शिवाजी महाराज की कथा कहने आया हूँ लेकिन जितना मैं कह रहा हूँ, उतनी ही अगाध ज्ञानश्रुति का श्रवण भी कर रहा हूँ। इसलिए यह कथा नहीं अपितु शिव कथा का संवाद हो गया। भगवद्गीता संवाद है,इसमें दोनों ओर से बोला जाता है। इसलिए भगवद्गीता के मंथन में सच्चा आनंद आता है। उन्होंने कहा कि वेद में वाणी की बड़ी महिमा है और उसी का आधार लेकर राष्ट्र को जागृत किया जाता है। स्वामी गोविन्द देव ने कहा कि महाभारत में स्पष्ट रूप से कहा है कि उत्तम राज्य वह है जहाँ सज्जन निर्भयता से विचरण करते हैं। पापियों के राज्य में सज्जनों को छिपकर रहना पड़ता है,महिलाओं को अपनी आत्मरक्षा का डर रहता है। इन्हीं सज्जनों की रक्षा के लिए भगवान राम दण्ड लेकर चले थे। संसार में कुछ दुर्जन ऐसे होते हैं तो दण्ड के भय से ही अनुशासन में रहते हैं। गीता में कहा है कि ऐसे पापियों का पूर्ण विनाश ही करना पड़ता है। कार्यक्रम में स्वामी रामदेव ने कहा कि शिवाजी महाराज के चरित्र,व्यक्तित्व व उनकी साधना पर पूरे देश को गौरव है। वे भगवान शिव के अंशावतार के साथ-साथ शक्ति-भक्ति व राष्ट्रधर्म के पूर्णावतार हैं। वे हमारी सनातनी परम्परा के बहुत बड़े गौरव हैं। प्रथम सनातन धर्म,हिन्दू धर्म,राष्ट्रधर्म, हिन्दू साम्राज्य की प्रतिष्ठा के प्रणेता,उद्गाता,उद्घोषक,पुरोधा,प्रेरक और भारतवासियों के हृदय में सनातन धर्म और राष्ट्रधर्म की प्रेरणा जगाने वाले सबसे बड़े आदर्श या रोल मॉडल छत्रपति शिवाजी महाराज हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी महापुरुष के चरित्र के एक-दो प्रधान तत्व होते हैं,जैसे मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम भगवान के पूर्ण अवतार हैं,यह तो उनका अध्यात्म तत्व है लेकिन उनका प्रधान तत्व राजधर्म और मर्यादा है। भगवान कृष्ण का प्रधान तत्व कर्मयोग और योग की सारी विभूतियाँ है। भगवान शिव,भगवान हनुमान,भगवान राम, छत्रपति शिवाजी महाराज आदि सभी महापुरूषों ने धर्म युद्ध में,देवासुर संग्राम में पाप व अधर्म का विनाश कर धर्म व न्याय की प्रतिष्ठा की। भगवान शिव में समाधि तत्व प्रधान है और शिव तो अनादि, अनंत है,अजन्मा हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज का सनातन धर्म हिन्दू धर्म मूलक राष्ट्रधर्म उनका प्रधान तत्व है और एक तत्व के निर्वहन के लिए एक-एक क्षण पुरुषार्थ करना होता है। इस अवसर पर गाथा मंदिर,धुले,महाराष्ट्र के संस्थापक पूज्य पांडुरंग जी ने कहा कि गोधर्म प्रतिपालक,हिन्दु धर्म रक्षक और स्वराज्य के स्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज महाराष्ट्र के बड़े देवत्व हैं। शिवाजी महाराज ने हिन्दु धर्म की साधना व रक्षा की है। कार्यक्रम में भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अधिकारी एन.पी.सिंह,भारत स्वाभिमान के मुख्य केन्द्रीय प्रभारी भाई राकेश‘भारत’व स्वामी परमार्थदेव,पतंजलि विश्वविद्यालय के आई.क्यू.ए.सी.सैल के अध्यक्ष प्रो.के.एन.एस.यादव,कुलानु शासक स्वामी आर्षदेव सहित सभी शिक्षण संस्थान यथा-पतंजलि गुरुकुल,आचार्यकुल,पतंजलि विश्वविद्यालय एवं पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्यगण व विद्यार्थीगण,पतंजलि संन्यासाश्रम के संन्यासी भाई व साध्वी बहनें तथा पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध प्रमुख अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।