अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भारतीय इतिहास का दूसरा स्वर्ण क्षण: स्वामी गोविन्द देव गिरि

सनातन धर्म को किसी राजाश्रय या राजनैतिक पार्टी की आवश्यकता नहीं है,: स्वामी रामदेव


 हरिद्वार। शक्ति व मर्यादा साधना का महापर्व चैत्र नवरात्रि व रामनवमी के उपलक्ष्य में वेदधर्म व ऋषिधर्म के संवाहक योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज के 30वें संन्यास दिवस के पावन अवसर पर स्वामी गोविन्ददेव गिरि जी महाराज के श्रीमुख से हिन्दवी स्वराज के प्रणेता छत्रपति शिवाजी महाराज की यशोगाथा‘‘छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’’का शुभारम्भ आज योगभवन,पतंजलि योगपीठ-2 के सभागार में हुआ। कथा के प्रथम दिन स्वामी रामदेव व आचार्य बालकृष्ण ने व्यासपीठ को प्रणाम करते हुए गोविन्ददेव गिरि जी महाराज से कथा प्रारंभ करने का अनुरोध किया। स्वामी गोविन्द देव गिरि जी ने कहा कि शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किसी राजा का राज्याभिषेक नहीं था तथापि वह भारतीय इतिहास का सर्वोत्तम स्वर्ण क्षण था। इसके उपरान्त भारतीय इतिहास का दूसरा स्वर्ण क्षण 22जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का क्षण था। उन्होंने कहा कि आयु के 15वें वर्ष में छत्रपति शिवाजी ने हिन्दू साम्राज्य की स्थापना हेतु प्रतिज्ञा ली। उसके बाद अनेक प्रकार की आपदाओं को झेलते हुए, संघर्ष करते हुए,शत्रुओं से घिरे रहने पर भी युद्ध नीति का आश्रय लेते हुए उन्हें परास्त करके लगभग 350किलों का आधिपत्य निर्माण किया। स्वामी जी महाराज ने कहा कि अंग्रेजों से पहले हमारे देश में कोई भी जिला ऐसा नहीं था जिसमें गुरुकुल संचालित नहीं थे। 1818 से पहले भारत में 70प्रतिशत लोग अत्यंत शिक्षित थे। अंग्रेजों ने अपनी शिक्षा नीति हम पर थोपकर भारत की शिक्षा को बर्बाद कर दिया। षड्यंत्रपूर्वक हमारे भारत के गौरवशाली इतिहास व भारतीय शासकों की पराक्रम गाथा को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया। इस अवसर पर स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि सनातन हिन्दू धर्म के दो पक्ष हैं-एक भारत की सनातन ज्ञान परम्परा,ऋषि परम्परा,वेद परम्परा जो 1अरब 96करोड़़ 8 लाख 53 हजार 122वर्ष पुरानी हमारी सांस्कृतिक विरासत है और दूसरा हमारे भारत के पूर्वजों का पराक्रम,शौर्य व वीरता। हमारा कलैण्डर 2024 वर्ष पुराना नहीं है। दुर्भाग्य से हम अपने इतिहास को,अपनी संस्कृति को,अपने वैभव को,गौरव को इतने भूल गए कि अपने सनातन ज्ञान के प्रवाह को,पुण्यों के प्रवाह को विस्मृत करके हम गुलामी,आत्मग्लानि,कुण्ठाओं व भ्रान्तियों में डूब गए थे। सनातन धर्म को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं है,किसी राजाश्रय,कॉर्पोरेट हाऊस या राजनैतिक पार्टी की आवश्यकता नहीं है। ये सनातन के रक्षक नहीं है। सनातन धर्म तो शाश्वत है लेकिन सनातन धर्म विरोधी,राष्ट्र विरोधी जो असुर व राक्षस प्रवृत्ति के लोग जब सनातन के मूल्यों व आदर्शों पर प्रहार करते हैं,उस समय जिस जुझारूपन की जरूरत होती है वह हिन्दुत्व है। उस हिन्दुत्व के, हिन्दवी साम्राज्य के कोई संस्थापक, प्रतिष्ठापक,उद्घोषक या प्रणेता हैं तो वह नवजागरण के पुरोधा,राष्ट्रधर्म के योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज हैं। उन्होंने कहा कि छत्रपति महाराज ने 350वर्ष पूर्व माँ भवानी की उपासना करके जहाँ अपने सनातन के वैभव को अक्षुण्ण रखा,वहीं राष्ट्रधर्म की आराधना करके हिन्दु साम्राज्य की प्रतिष्ठा की। हिन्दवी साम्राज्य की प्रतिष्ठा के 350वर्ष पूर्ण होने पर पहली बार व्यास पीठ से गोविन्द देव गिरि जी महाराज के श्रीमुख से यह ‘छत्रपति शिवाजी कथा हो रही है। कहा कि इस कथा का उद्देश्य है कि हम छत्रपति शिवाजी महाराज के चरित्र से प्रेरणा लेकर अखण्ड भारत की प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाएँ। साथ ही पाकिस्तान,अफगानिस्तान ,इंडोनेशिया, मलेशिया,कम्बोडिया ,अक्साई चीन तक जो भारत का साम्राज्य फैला था,उस भारत को वापस कैसे जोड़ा जा सकता है,इस संकल्प को जागृत करें। इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध समस्त इकाइयों के इकाई प्रमुख, अधिकारी गण,विभागाध्यक्ष,पतंजलि विश्वविद्यालय,आचार्यकुल,पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय,पतंजलि गुरुकुल,पतंजलि रिसर्च फाउण्डेशन,पतंजलि कन्या गुरुकुल,वैदिक गुरुकुलम् इत्यादि सभी शिक्षण संस्थान के शिक्षक गण,विद्यार्थीगण,पतंजलि संन्यासाश्रम के समस्त संन्यासी भाई व साध्वी बहनें,पतंजलि योगपीठ के थैरेपिस्ट ,चिकित्सक सभी कर्मयोगी भाई-बहन आदि उपस्थित रहे।