आध्यात्मिक ज्ञान सम्पदा का सर्वोच्च शिखर है भारत -डॉ.चिन्मय पण्ड्या

चित्त के एकाग्र होने से मिलती है परम शांति - प्रो. शास्त्री

अतंराष्ट्रीय योग दिवस काउंटडाउन कार्यक्रम के अंतर्गत योग महोत्सव का आयोजन


 हरिद्वार। अतंराष्ट्रीय योग दिवस काउंटडाउन कार्यक्रम के अंतर्गत देव संस्कृति विश्वविद्यालय में योग महोत्सव (योगाभ्यास प्रोटोकॉल) का आयोजन आयुष मंत्रालय (भारत सरकार), मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान और देवसंस्कृति विवि के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ.चिन्मय पण्ड्या एवं उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.दिनेश चन्द्र शास्त्री द्वारा दीप प्रज्वलन एवं देसंविवि के कुलगीत से हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.दिनेश चन्द्र शास्त्री ने कहा कि योग का अर्थ है अनुशासन। अपने जीवन में अनुशासन को लाना ही योग है। उन्होंने कहा कि चित्त की वाह्यमुखी एवं अंतर्मुखी ये दो वृत्तियां होती हैं। इन दोनों पर नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि एकाग्रता अत्यंत आवश्यक है, जब हम एकाग्र होते हैं,तभी परम सुख की अनुभूति होती है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ.चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि हमारा मूल भाव बाहर शरीर में नहीं, इसके अंदर प्रवाहित हो रही भाव चेतना,प्राण चेतना में है, उस प्राण को पोषण देने का कार्य योग करता है। युवा आइकॉन डॉ पण्ड्या ने कहा कि जिसने अपने अंदर के कर्म शुद्ध कर लिया और मन को शांत कर लिया, वही बाहर की परिस्थितियों को सही करने की भी क्षमता रखता है। योग मात्र बीमारियां ठीक नहीं करता,बल्कि परम शांति भी प्रदान करता है,इसलिए भारत को आध्यात्मिक ज्ञान संपदा का सर्वोच्च शिखर कहते हैं। युवा आइकॉन ने कहा कि जीवन के मूल ध्येय,आधार और केंद्र की ओर दृष्टि लौटाने का विज्ञान ही योग का विज्ञान है। मनुष्य में देवत्व का उदय,धरती पर स्वर्ग का अवतरण के पीछे का जो मंत्र है,वही योग है।इस अवसर पर देसंविवि के उच्च प्रशिक्षित योगाचार्यों ने भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुसार योगाभ्यास कराया। देसंविवि एवं अन्य विद्यालयों से आये हजारों विद्यार्थियों, आचार्य एवं अन्य सदस्यों ने उत्साहपूर्ण योगाभ्यास किया। योगाभ्यास क्रम में शिथिलीकरण,ग्रीवा चालन ,ताड़ासन,वृक्षासन,पादहस्तासन,अर्धचक्रासन,त्रिकोणासन,वक्रासन,शशांकआसन,उत्तानमंडूक आसन जैसे कई आसानों का अभ्यास कराया गया। साथ ही इन सभी योगासनों से होने वाले लाभों के विषय में भी बताया गया।समापन से पूर्व भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने के साथ ही विश्व भर में जन-जन तक योग को पहुंचाने के संकल्प लिये गये। प्रतिकुलपति डॉ.चिन्मय पण्ड्या ने मुख्य अतिथि प्रो.शास्त्री को स्मृति चिन्ह एवं पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित वांगमय आदि भेंटकर सम्मानित किया। देसंविवि के योगाचार्य डॉ.कामता प्रसाद साहू एवं डॉ.ज्योति मालवी ने संयुक्त रूप से योगाभ्यास प्रोटोकॉल सम्पन्न कराया। इस अवसर पर कुलसचिव बलदाऊ देवांगन,उप कुलसचिव डॉ.उमाकांत इंदौलिया,संकायाध्यक्ष प्रो.सुरेश वर्णवाल,विश्वविद्यालय के समस्त विद्यार्थी एवं शिक्षकगण उपस्थित रहे।