संतोषी व्यक्ति कभी दरिद्र नहीं होता-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

 


हरिद्वार। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार जुर्स कंट्री द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सप्तम दिवस की कथा श्रवण कराते हुए भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि संतोषी व्यक्ति कभी दरिद्र नहीं होता। सुदामा परम संतोषी ब्राह्मण थे। हमेशा भगवान का धन्यवाद कहते थे। बाल्यकाल में संदीपनी मुनि के गुरुकुल में विद्या अध्ययन के दौरान कृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई। विद्या अध्ययन के बाद दोनों अपने घर चले गए। समय बलवान होता है कृष्ण द्वारिकापुरी के राजा द्वारिकाधीश बन गए। परंतु सुदामा की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। सुदामा अपनी पत्नी सुशीला एवं दो बच्चों के साथ झोपड़ी में निवास करते थे। खाने,पहनने,ओढ़ने और बिछाने के लिए भी कुछ नहीं था। परंतु भगवान से कभी कुछ नहीं मांगते थे। हमेशा श्रीकृष्ण की मित्रता को याद करते हुए उनकी भक्ति किया करते थे। एक बार पत्नी के कहने पर सुदामा एक पोटली में दस मुट्ठी चावल लेकर श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिकापुरी पहुंचे। श्रीकृष्ण ने द्वारिकापुरी में सुदामा का बहुत आदर सत्कार किया। श्रीकृष्ण जानते थे कि सुदामा मुझसे कभी कुछ नहीं मांगेंगे। श्रीकृष्ण ने सुदामा के लाए चावलों में से जब एक मुट्ठी चावल अपने मुख में डाला और ऊपर के सातों लोक सुदामा के नाम कर दिए और दूसरी मुट्ठी में नीचे के सातों लोक सुदामा के नाम कर दिए। सुदामा जब द्वारिकापुरी से लौटकर अपने गांव पहुंचे तो अपनी झोंपड़ी की जगह महलों को देखकर सुदामा को बड़ा आश्चर्य हुआ। शास्त्री ने बताया कि भगवान अपने भक्तों को अपना सर्वस्व अर्पण कर देते हैं। भगवान की भक्ति करने वाले व्यक्ति के पास किसी भी चीज की कमी नहीं रहती। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को मन में संतोष धारण कर भगवान की भक्ति करनी चाहिए। मुख्य यजमान पुष्पा खुराना,हेमन्त खुराना,रिंकू खुराना,प्रवीण खुराना,प्रीति खुराना,मुस्कान खुराना,कृष्णा खुराना ,पार्थ खुराना,पूनम कुमार,राकेश कुमार,चिराग कुमार,अनीशा कुमार,ऐशना कुमार,राम खुराना, किरन खुराना,रोहित चुग,मधु चुग,पूनम सैनी,सुनील सैनी,अभिमन्यु दुर्गा,नमिता दुर्गा,त्रिलोकी नाथ शर्मा,गीता शर्मा,अंजू ओबेरॉय,राज ओबेरॉय,संगीता मदान,पंकज मदान,मधु चुग,शीतल सिडाना,योगिता मित्तल,आरती माटा,श्रेष्ठा कुमार आदि ने भागवत किया।