गौपाष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण ने शुरू की थी गौचारण लीला-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

 


हरिद्वार। रामनगर कालोनी स्थित श्री राधा रसिक बिहारी मंदिर में गौपाष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौचारण लीला आरंभ की थी। गौपाष्टमी पर बछड़े सहित गाय का पूजन करने का विधान है। पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण जब छह वर्ष के हुए तो उन्होंने एक दिन भगवान माता यशोदा कहा कि मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं। अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे। मैय्या ने कहा ठीक है बाबा से पूछ लेना। मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान नंद बाबा से पूछने पहुंच गए। बाबा ने कहा लाला अभी तुम बहुत छोटे हो, अभी तुम बछड़े ही चराओ। भगवान ने कहा बाबा अब मैं बछड़े नहीं गाय ही चराऊंगा। जब भगवान नहीं माने तो बाबा बोले ठीक है लाला तुम पंडित जी को बुला लाओ। वह गौ चारण का मुहूर्त देख कर बता देंगे। बाबा की बात सुनकर भगवान पंडित के पास पहुंचे और बोले आपको बाबा ने बुलाया है,गौ चारण का मुहूर्त देखना है। आप आज ही का मुहूर्त बता देना। मैं आपको बहुत सारा माखन दूंगा। पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे। तब नंद बाबा ने पूछा,पंडित जी क्या बात हैं। आप बार-बार क्या गिन रहे हैं। पंडित जी बोले,क्या बताएं नंदबाबा, केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है। इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है। पंडित जी की बात मानकर नंदबाबा ने भगवान को गौ चारण की स्वीकृति दे दी। भगवान जिस समय कोई कार्य करें। वही शुभ-मुहूर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरंभ किया और वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी। भगवान के गौ-चारण आरंभ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई। माता यशोदा ने अपने लल्ला का श्रृंगार किया और जैसे ही पैरों में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैय्या यदि मेरी गौएं जूतियां नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन सकता हूं। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो और भगवान जब तक वृंदावन में रहे कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी। आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल। इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान ने वन में प्रवेश किया तब से भगवान की गौ-चारण लीला का आरंभ हुआ। जब भगवान गौएं चराते हुए वृंदावन जाते तब उनके चरणों से वृंदावन की भूमि अत्यंत पावन हो जाती। वह वन गौओं के लिए हरी-भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन गया था। पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि गौ माता के भीतर 33कोटी देवी देवताओं का वास होता है। गौमाता की सेवा करने समस्त देवी देतवाओं का आशीर्वाद व कृपा प्राप्त होती है। इस अवसर पर बिमला भट्ट,रिंकी भट्ट, रिंकू शर्मा, चिराग अरोड़ा, पार्षद रेणु अरोड़ा आदि ने गौ माता का पूजन किया।