हरिद्वार। विश्व तीर्थ बचाओ अभियान दल हरिद्वार पहुंचा। यहां यह दल दुनिया के सबसे बड़े तीर्थ गंगा के दर्शन करने और भारतीय संतों से यह जानने आ रहे हैं कि भारतीय आस्था में प्रकृति रक्षा का व्यवहार और संस्कार कैसे बना? यह संस्कार और व्यवहार कब शुरू हुआ? भारतीय मानवता और प्रकृति का बराबरी से सम्मान करने का आधार क्या है? अभी भी मातृ सदन के स्वामी शिवानंद सरस्वती जैसे संतों में आर्थिक लोभ लालच की विमुक्ति से प्रकृति की संस्तुति कैसे होती है? प्रकृति को भगवान मानकर जिन पंचमहाभूतों से प्रकृति का सृजन हुआ,उनका भारत ने बहुत लंबे काल तक प्रेम,सम्मान,श्रद्धा,आस्था और भक्ति की। यह भक्ति भाव कैसे और क्यों कम हुआ? यह संवाद करने के लिए पावनधाम, मातृसदन, शंकराचार्य मठ, जयराम आश्रम आदि तीर्थ स्थान पर यह दल जाएगा। 15नवंबर को मातृ सदन में विश्व तीर्थ बचाओ सम्मेलन आरंभ होगा और शाम 4 से 5 के बीच शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे। आज शाम को गंगा आरती और पावन धाम में कई विविध कार्यक्रम होंगे जिनमें संतों के साथ-साथ जनमानस को सुनेंगे। 16नवंबर को मातृ सदन हरिद्वार में विश्व तीर्थ बचाओ सम्मेलन सतत जारी रहेगा। सम्मेलन में 12 देश जिनमें पुर्तगाल, अमेरिका, बेल्जियम, पेरू, बेनिन गणराज्य,कैमरून, कोलंबिया, फ्रांस,जर्मनी,चिली,इजराइल और भारत के 19प्रतिभागी सम्मिलित होंगे।यह यात्री दल हिमालय की हरियाली और गंगा की पवित्रता के संबंध से बने गंगत्व(बायोफाज) का भी प्राकृतिक अध्ययन करेंगे। इस यात्रा दल का लक्ष्य है कि दुनिया में जो जलवायु परिवर्तन का संकट जिस लालच के कारण बढ़ता जा रहा है, उस समस्या का समाधान भारतवर्ष के लोगों की प्रकृति के आस्था व पर्यावरण रक्षा के व्यवहार व संस्कार को जानना व इसका समाधान भारत के मूल ज्ञान में खोजना है।