हरिद्वार। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वावधान में गोकुलधाम कॉलोनी ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस पर भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने सृष्टि वर्णन कथा का श्रवण कराते हुए बताया कि श्री हरि विष्णु शेषशैया पर योगनिद्रा में लीन थे। उनकी नाभि से एक विशाल कमल पुष्प प्रगट हुआ। उस दिव्य कमलपुष्प पर ब्रह्मा का प्राकट्य हुआ। ब्रह्मा ने अपने चार सिर से चारों दिशाओं को देख कर विचार करने लगे कि मेरा जन्मदाता कोन है। यह विचार कर ब्रह्मा कमल नाल के भीतर प्रविष्ट हो गए।. वह उसकी गहराई में समाते चले गए। लेकिन उन्हें उसका कोई ओर-छोर नहीं मिला।.ब्रह्मा वापस कमल पुष्प पर लौट आए। उन्हें जिज्ञासा हुई कि वह कौन हैं, कहां से उत्पन्न हुए, उनके उत्पन्न होने का उद्देश्य क्या है। इन्ही विचारों में वह ध्यानलीन हुए.तो उन्हें अपने भीतर एक शब्द सुनाई दिया “तपस तपस”. ब्रह्मा ने सौ वर्षों का ध्यान लगाया। ब्रह्मा को भगवान विष्णु की प्रेरणा ध्वनि सुनाई दी। समय बर्बाद न करो सृष्टि की रचना के लिए तुम्हारी उत्पत्ति हुई है। इसलिए शीघ्र ही अपना कार्य आरंभ करो। ब्रह्मा ने श्रीहरि को प्रणाम कर सृष्टि निर्माण आरंभ किया। ब्रह्मा ने अपने शरीर से कई रचनाएं की।ं लेकिन उन्हें अपनी रचना पर संतोष न हुआ। सबसे पहले ब्रह्मा ने स्थूल जगत की रचना की, फिर उन्होंने चार मुनियों की रचना की सनक, सनन्दन, सनातन और सनत कुमार इन चारों कुमारों ने संतान पैदा करने से यह कहते हुए मना कर दिया कि हम बालक ही रहेंगे। सनकादि नाम से विख्यात चारों मुनि निवृति के मार्ग पर चले गए। ब्रह्मा ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। किंतु वे नहीं रूके, ब्रह्मा क्रोधित हुए तो उनकी भौहों से एक बालक निकला वह बालक जन्म लेते ही रोने लगा। इसलिए उसका नाम रूद्र हुआ। ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की शक्ति से मारीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, पुलत्स्य, क्रतु, वशिष्ठ, दक्ष,भ् ाृगु और नारद दस तेजस्वी मानस पुत्र उत्पन्न किए। फिर ब्रह्मा ने अपने मुख से एक सरस्वती नामक कन्या को उत्पन्न किया। नारद पूर्व सृष्टि के पूर्वजन्म के आशीर्वचन से अपना सत्य स्वरुप नहीं भूले थे। तो उन्होंने श्रीहरि विष्णु की भक्ति में ही जीवन जीने का निर्णय लिया। ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो अंश किए एक अंश से पुरुष और दूसरे से स्त्री प्रकट हुई। पुरुष स्वयंभावु मनु थे और स्त्री का नाम था शतरूपा। ब्रह्मा ने मनु-शतरूपा को संतान उत्पन्न करने का आदेश दिया। चूंकि पृथ्वी रसातल में समाई हुई थी सो मनु-शतरूपा ने ब्रह्मा से पूछा कि वे और उनकी संताने कहां रहेंगी क्योंकि पृथ्वी तो जल मग्न है। ब्रह्मा चिंतामग्न हो गए और अपने सृजनकर्ता श्रीहरि का स्मरण करने लगे तभी पृथ्वी के रसातल से उद्धार के लिए श्रीहरि ब्रह्मा की नाक से वराह रूप में प्रकट हुए अंगूठे के आकार का वराह देखते-देखते पर्वत के समान विशाल जीव हो गया। वराह अवतार में प्रभु ने हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को रसातल से निकाल लाए। पृथ्वी को जल के ऊपर स्थित करके वराह अवतार श्रीहरि विलीन हो गए। मनु और शतरूपा की पांच संतानें हुई- प्रियव्रत और उत्तानपाद पुत्र हुए, आकूति, देवहुति एवं प्रसूति कन्याएं। मनु ने आकूति का विवाह रुचि प्रजापति, देवहुति का कर्दम ऋषि और प्रसूति का दक्ष प्रजापति से किया। इन कन्याओं की संतानों से सारा संसार भर गया शास्त्री ने बताया मनु और शतरुपा की संतानों ने सृष्टि चलाने के लिए संतान उत्पन्न करना आरंभ किया। उससे पृथ्वी पर मनुष्यों का आगमन हुआ और इसके उपरांत शास्त्री ने बताया जैसे-जैसे मनुष्य आगे बढ़ते गए और शरीर छोड़ते गए तो उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध की परंपरा प्रारंभ हुई। शास्त्रों में श्रद्धा के विषय में अनेकों अनेकों प्रमाण मिलते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं। ब्रह्मपुराण के अनुसार जो व्यक्ति शाक के द्वारा भी श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है। उसके कुल में कोई भी दुखी नहीं होता। देवस्मृति के अनुसार श्राद्ध की इच्छा करने वाला प्राणी निरोगी, स्वस्थ, दीर्घायु, योग्य संतति वाला, धनी तथा धनोपार्जक होता है। श्राद्ध करने वाला मनुष्य विविध शुभ लोकों और पूर्ण लक्ष्मी की प्राप्ति करता है। मुख्य जजमान वीणा धवन, अंशुल धवन, सागर धवन, लक्ष्य धवन, ज्योति मदन, कनिषा मदन, कृष्ण गाबा, रेखा गाबा, पारुल, पूनम, दिनेश गोयल, अरुण मेहता, मालिका मेहता, मीनू सचदेवा, संजय सचदेवा आदि सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।