त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति थे ब्रह्मलीन स्वामी कृष्णानंद एवं स्वामी प्रियत्मानंद-स्वामी कपिल मुनि


 हरिद्वार। ब्रह्मलीन स्वामी कृष्णानंद महाराज एवं ब्रह्मलीन स्वामी प्रियत्मानंद महाराज की पुण्यतिथी पर सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूषों ने उनका भावपूर्ण स्मरण करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित किए। श्रवणनाथ नगर स्थित जगद्गुरू उदासीन आश्रम में आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि महाराज के संयोजन में श्रद्धांजलि समारोह की अध्यक्षता  करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी कपिल मुनि महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी कृष्णानंद महाराज एवं ब्रह्मलीन स्वामी प्रियत्मानंद महाराज त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति थे। सनातन धर्म संस्कृति के प्रचार प्रसार में उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि जिस प्रकार गुरू परंपरांओं का पालन करते हुए उनके अधूरे कार्यो को आगे बढ़ा रहे हैं। उससे युवा संतों को प्रेरणा लेनी चाहिए। महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज महाराज ने कहा कि गुरू ही शिष्य का मार्गदर्शन कर उसके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए सनातन धर्म संस्कृति में गुरू का स्थान सर्वोच्च बताया गया है। स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि का अपने गुरूओं के प्रति निष्ठाभाव सभी के लिए प्रेरणादायी है। संत महापुरूषों का आभार व्यक्त करते हुए स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि ने कहा कि पूज्य ब्रह्मलीन गुरूजन स्वामी कृष्णानंद महाराज एवं स्वामी प्रियत्मानंद महाराज विद्वान संत थे। धर्म शास्त्रों का उनका ज्ञान विलक्षण था। गुरूजनों से प्राप्त ज्ञान व शिक्षाओं के अनुसरण और संत समाज के आशीर्वाद से गुरू परंपरांओं को आगे बढ़ाते हुए आश्रम की सेवा संस्कृति का विस्तार करना ही उनके जीवन का उद्देश्य है। महंत गोविंददास एवं महंत गंगादास ने भी श्रद्वांजलि दी। श्रद्धांजलि समारोह का संचालन करते हुए स्वामी रविदेव शास्त्री महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी कृष्णानंद एवं ब्रह्मलीन स्वामी प्रियत्मानंद संत समाज के प्रेरणा स्रोत थे। सभी को उनके त्यागपूर्ण जीवन से प्ररेणा लेनी चाहिए। इस अवसर पर स्वामी नामदेव,महंत जयेंद्र मुनि,महंत राघवेंद्र दास,महंत अरूण दास, महंत दर्शन दास,स्वामी अनंतानंद,स्वामी चिदविलासानंद,महंत नारायण दास पटवारी,महंत गोविंद दास,महंत सूरज दास,महंत हरिदास,महंत प्रेमदास सहित सभी तेरह अखाड़ों के संत महंत और श्रद्धालुजन उपस्थित रहे।