श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने से तृप्त होते हैं पितृ-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री


 हरिद्वार। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में गोकुलधाम कॉलोनी ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने श्राद्ध और तर्पण का महत्व बताते हुए कहा कि श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध और जिस कर्म से पूर्वज तृप्त हों वह तर्पण है। वेदों में श्राद्ध को पितृयज्ञ कहा गया है। श्राद्ध-तर्पण पूर्वजों के प्रति सम्मान का भाव है। पितृयज्ञ सम्पन्न होता है सन्तानोत्पत्ति और सन्तान की सही शिक्षा-दीक्षा से। इसी से पितृ ऋण से भी मुक्ति मिलती है। शास्त्री ने बताया कि वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं। ब्रह्म यज्ञ,देव यज्ञ,पितृयज्ञ,वैश्वदेव यज्ञ,अतिथि यज्ञ। इन पांच यज्ञों के बारे मे वेदो, पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार वर्णन दिया गया है। इन पांच यज्ञो में से ही एक यज्ञ है पितृयज्ञ। इसे पुराण में श्राद्ध कर्म कहा गया है। प्रत्येक मनुष्य को अपने पितरों के उद्धार के लिए एवं पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध कर्म बडी ही श्रद्धा के साथ करना चाहिए। शास्त्री ने बताया पितृयज्ञ या श्राद्धकर्म के लिए अश्विन माह का कृष्ण पक्ष तय किया गया है। इस पक्ष में देहत्याग की तिथि पर पितरों का श्राद्ध करने से पितृ तृप्त हो जाते हैं। पितृदोष के कारण जीवन में दुख एवं कष्ट आते हैं। पितरों की प्रसन्नता के लिए श्राद्ध कर्म के साथ श्रीमद् भागवत कथा का पाठ एवं श्रवण भी पितृ दोष से मुक्ति दिलाता है एवं घर में सुख समृद्धि आती है। कथा में मुख्य जजमान वीणा धवन, अंशुल धवन,सागर धवन,लक्ष्य धवन,ज्योति मदन,कनिषा मदन,कृष्ण गाबा,रेखा गाबा,पारुल,पूनम,दिनेश गोयल,अरुण मेहता,मलिका मेहता,मीनू सचदेवा,संजय सचदेवा आदि सहित अनेक श्रद्धालु मौजूद रहे।