हरिद्वार। उत्तराखंड राज्य बनाए जाने हेतु संघर्ष करने वाले बहुत से आंदोलनकारी आज भी चिन्हित होने से वंचित हैं। इसे व्यवस्था का दोष बताएं या सरकार की नाकामी। ज्ञात हो कि वर्ष 2016 मे तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आंदोलनकारी चिन्हित करने की घोषणा की तत्पश्चात वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2021 में 31 दिसंबर तक राज्य बनाए जाने हेतु संघर्ष करने वाले चिन्हित होने से वंचित आंदोलनकारियों को चिन्हित करने हेतु शासनादेश जारी किया, किंतु हरिद्वार जनपद में शासनादेश के क्रम में एक भी आंदोलनकारी चिन्हित नहीं किया गया इससे पूर्व चिन्हित किए गए,आंदोलनकारी चिन्हित किए जाने में चिन्हित करने वाली समिति के सदस्यों ने चिन्हित किए जाने में भारी धांधली की तथा आंदोलनकारी चिन्हित करने की व्यवस्था को परिवारवाद की आग में झोंक दिया। सरकार तथा शासन का ध्यान बार-बार ईश्वर आकर्षित करने के बाद भी चिन्हित होने से वंचित आंदोलनकारी के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया फर्जी साक्ष के आधार पर चिन्हित होने वाले बहुत से आंदोलनकारी सरकारी सुविधा तथा पेंशन पर मौज काट रहे हैं पूर्व में ऐसे ऐसे आंदोलनकारी चिन्हितकरण समिति ने चिन्हित किए हैं जो आंदोलन के समय हरिद्वार जनपद में थे ही नहीं बहुत से तो आंदोलन के समय अपनी मां के गर्भ में पल रहे थे बहुत सी ऐसी विभूतियां भी चिन्हित हुई हैं जिनके चिन्हित किए जाने हेतु लगाए गए दस्तावेज समाचार कातरने वर्ष 2007 व 2009 की लगी है बहुत सी ऐसी महिलाएं चिन्हित की गई तो आंदोलन के समय दूसरे परदेस व जनपदों की निवासी थी व बहुत से महानुभाव जिस दिन के उन्होंने साक्ष्य लगाए हैं उन दिनों में अपने प्रतिष्ठानों में विभागों में ड्यूटी पर तैनात थे वहां उनकी हाजिरी लगी हुई है तो वह आंदोलन में कब आए और कब उन्होंने आंदोलन में भाग लिया बहुत से ऐसे समाचार पत्रों की कतरन बैक डेट में छाप कर चिन्हित किए जाने हेतु इस्तेमाल की गई हैं जो उत्तराखंड बनने के बाद में प्रकाशित हुए हैं अगर उनकी उच्च स्तरीय जांच कराई जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा उत्तराखंड आंदोलन में भाग लेने वाले तथा सन 1994को रामपुर तिराहा कांड में घायल होने वाले युवा आंदोलनकारी ठाकुर मनोजानंद ने चिन्हित होने से वंचित आंदोलनकारियों को चिन्हित किए जाने की मांग की। उन्होंने बताया की उनके साथ चिन्हित किए जाने में छल हुआ है।
उत्तराखंड राज्य के लिए संघर्ष करने वाले आंदोलनकारी चिन्हित होने से वंचित