भगवान शिव करते हैं चातुर्मास में सृष्टि का संचालन-स्वामी विज्ञानानंद

 हरिद्वार। श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज ने कहा है कि चातुर्मास में सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं, जो श्रावण मास पर्यंत हरिद्वार में दक्षेश्वर रूप में भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। विष्णु गार्डन स्थित श्री विज्ञानेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित रुद्राभिषेक में सम्मिलित भक्तों को शिव की उपासना का महत्व समझाते हुए उन्होंने कहा कि गुरु पूर्णिमा से देवोत्थान एकादशी तक भगवान श्रीहरि का क्षीर सागर में शयनकाल होता है। इस अवधि में सृष्टि के संचालन का दायित्व भगवान भोलेनाथ पर रहता है। हरिद्वार से भगवान शिव का सीधा संबंध बताते हुए उन्होंने कहा कि देवासुर संग्राम के पश्चात समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को अपने कंठ में धारण करने के बाद शिव ने हरिद्वार की नीलधारा में स्नान कर विष की गर्मी को शांत कर नीलकंठ मंदिर में विश्राम किया था। ब्रह्मा पुत्र राजा दक्ष की पुत्री सती का विवाह भगवान भोलेनाथ के साथ हुआ था। राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया,लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। देवी सती बिना बुलाए ही अपने पिता के यज्ञ में पहुंचीं तो भगवान शिव का आसन न देखकर क्षुब्ध हुई और यज्ञ में कूदकर दग्ध हो गयीं। भगवान शिव ने कनखल में ताण्डव किया और वीरभद्र ने राजा दक्ष का सिर काटकर हवन कुंड में डाल दिया। देवताओं की विनती पर भगवान शिव ने बकरे का सिर काटकर राजा दक्ष के लगाया और उनको जीवनदान दिया। उसी दिन से बकरे की बलि प्रथा का  शुभारंभ हुआ जो तंत्र विद्या में आज भी प्रचलित है। संपूर्ण भारत वर्ष में स्थापित 52 शक्तिपीठों का महत्व बताते हुए वयोवृद्ध -ज्ञानवृद्ध शतायु संत ने कहा कि भगवान भोलेनाथ देवी सती के दग्ध शरीर को लेकर हिमालय पर गए जहां-जहां उनके शरीर के अवशेष गिरे वहीं मां पराम्बा शक्तिपीठों पर आज भी भक्तों को अपने दर्शनों से अभिभूत करती हैं। देवताओं की विनती पर ही भगवान भोलेनाथ ने सावन मास पर्यंत हरिद्वार में प्रवास करने का आश्वासन दिया था और वे दक्षेश्वर, बिल्बकेश्वर एवं नीलकंठ के रूप में हरिद्वार के गंगा तटों पर अपने भक्तों के बीच में विद्यमान रहते हैं, इसीलिए हरिद्वार को हरद्वार के नाम से जाना जाता है। हरिद्वार से सावन मास पर्यंत करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु कावड़ के रूप में गंगाजल ले जाकर अपने-अपने शिवालयों में भगवान रुद्र का जलाभिषेक करते हैं। शिव उपासना की शक्ति का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि गंगाजल एवं शिव के जयकारों में इतनी शक्ति होती है कि शिवभक्त सैकड़ों कोस की यात्रा पैदल ही तय कर लेते हैं। उन्होंने सभी शिव भक्तों का आवाहन किया कि श्रावण मास पर्यंत भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करें। भगवान शिव ही शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इसीलिए उनको महादेव के रूप में जाना और पूजा जाता है। चातुर्मास में महादेव की आराधना महापुण्यफलदायी होती है। इस अवसर पर दिल्ली,चंडीगढ़,पंजाब, हरियाणा,राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त बड़ी संख्या में स्थानीय शिवभक्त भी उपस्थित रहे।