हरेला पर्व मनुष्य को प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन करने की प्रेरणा देता है

 हरिद्वार। राष्ट्रीय मानव अधिकार संरक्षण समिति की राष्ट्रीय सचिव रेखा नेगी ने कहा कि प्रकृति हमे प्राण वायु से लेकर हमारे जीवन चक्र को संतुलित रूप में संचालित करने लिए, हमारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती है। उसी मदद का आभार प्रकृति की रक्षा और पूजा के रूप में प्रकट करने का पर्व है हरेला। हरेले के दिन पेड़ लगाकर प्रकृति के सवर्धन में अपनी तरफ से एक छोटा सा योगदान देकर प्रकृति के चिरायु रहने की कामना की जाती है। उत्तराखंड के निवासी प्राचीन काल से ही, प्रकृति के प्रति अपना प्रेम और अपनी जिम्मेदारी को बखूबी दर्शाते आए हैं। उत्तराखंड में मनाया जाने वाला यह पर्व मूलतः पर्यावरण के साथ साथ कृषि विज्ञान को भी समर्पित है। वैसे तो उत्तराखंड में साल में तीन बार हरेला बोया जाता है। चैत्र मास,श्रावण मास ,और अश्विन मास में। हरेला पर्व मनुष्य को धरती पर जीवन यापन में सहयोग करने वाली प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन करने की प्रेरणा देता है। इसके साथ साथ सूर्य के दक्षिणायन होने के दिन मनाए जाने के कारण ,ऋतु परिवर्तन सूचक पर्व के रूप में भी हरेले का विशेष महत्व है। हरेले के अवसर पर उत्तराखंड की लोक कला ऐपण पर आधारित डिकरे बनाये जाते हैं,जिस कारण उत्तराखंड की लोककला और संस्कृति के प्रचार में भी हरेले का महत्त्व जुड़ जाता है। हरेला पर्व प्रकृति की रक्षा की सद्भावना पर आधारित है।