विष को कंठ में धारण करने से नीलकंठ कहलाए महादेव शिव-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

 


हरिद्वार। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में शिव विहार कालोनी ज्वालापुर स्थित प्राचीन शिव मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस की कथा श्रवण कराते हुए भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि नित्य भगवान शिव का पूजन करना चाहिए। विशेष रुप से श्रावण माह में भगवान शिव की आराधना अवश्य करनी चाहिए। जब समुद्र मंथन हुआ तो सर्वप्रथम हलाहल विष निकला। लोक कल्याण के लिए भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। जिससे भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और उनका नाम नीलकंठ पड़ा। विषपान करने से बहुत ज्यादा जलन होने पर भक्तों ने गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करना प्रारंभ किया। जलाभिषेक से भगवान शिव को बड़ी शीतलता मिली। भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया कि जो भी भक्त उनका जलाभिषेक करेगा उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। तभी से भगवान शिव का अभिषेक शिवभक्त बड़े ही श्रद्धा भक्ति के साथ करते हैं। उन्होंने कहा कि शिव ही एकमात्र ऐसे हैं जिन्हें भोला भंडारी कहा जाता है। भगवान शिव इतने सरल है कि बेल पत्र,पुष्प,फल एवं जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। इस अवसर पर अनुज आर्य,रेखा आर्य,दीपक गुप्ता,मीनाक्षी बंसल,पंडित जगन्नाथ प्रसाद,पार्वती देवी,अनूप तिवारी,वीना गुप्ता,शांति दर्गन,पंडित गणेश कोठारी,राजेंद्र राघव,अमित नामदेव आदि ने भागवत पूजन किया।