ब्रजभूमि से दिया गया श्रीकृष्ण का मानवता का संदेश आज भी प्रासंगिक-स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती

 हरिद्वार। सृष्टि की समस्याओं का समाधान और संस्कारों का संवर्धन ही भगवान के अवतार का हेतु है, अन्यथा पूतना, कंस और कालिया नाग का वध करने के लिए वे किसी को भी भेज सकते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने भारत की ब्रजभूमि से मानवता का जो संदेश दिया। वह आज भी पूरे विश्व में प्रासंगिक है। उक्त उद्गार श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती ने राजा गार्डन के हनुमान मंदिर हनुमत गौशाला में भगवत वाणी का संचार करते हुए व्यक्त किए। भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलओं एवं महारास का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि ब्रज की गोपियां कोई सामान्य स्त्री न होकर स्वर्ग के देवता थे और भगवान भोलेनाथ को भी महारास में सम्मिलित होने के लिए गोपी रूप धारण करना पड़ा था। किसी खुले स्थान पर स्त्रियों का नग्न स्नान वर्जित बताते हुए उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्त्रियों के नग्नस्नान की प्रथा बंद कराई। भगवान की माखन लीला का यथार्थ समझाते हुए उन्होंने कहा कि नंदबाबा के यहां 10,000 गाय थी। उनके पुत्र को माखन चुराकर खाने की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन गोरस की बिक्री बंद हो और गोकुल का गोरस अन्यत्र न जाए इसीलिए सांकेतिक तौर पर उन्होंने इस प्रथा को बंद कराया। निराकार के स्थान पर साकार की पूजा का शुभारंभ कराने के लिए ही भगवान ने इंद्र के अभिमान को तोड़ते हुए गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाकर ब्रजमंडल को इंद्र के प्रकोप से बचाया। श्रीमद्भागवत रूपी पंचम वेद की ऋचाओं के अतिरिक्त प्रतिदिन श्रोताओं को किसी न किसी योग्य संत का आशीर्वचन भी मिलता है। आज श्रीगुरुमंडल आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी भगवत स्वरूप ने भक्ति मार्ग को मुक्ति का उपाय बताते हुए गुरु,गंगा और सत्संग के महत्व पर प्रकाश डाला। आयोजकों एवं भक्तों ने भगवान को छप्पन भोग लगाकर प्रसाद स्वरूप मिष्ठान वितरित कर श्रोताओं का मन एवं अंतःकरण पवित्र किया।