योजनाओं को बनाने के लिए जोशीमठ नष्ट होने के कगार पर-शिवांनद

 हरिद्वार। मातृ सदन के स्वामी शिवानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ को उसके वास्तविक रूप में बचाना मुश्किल सा लग रहा है। क्योंकि जोशीमठ विनाश के कगार पर पहुंच गया है और इसकी पटकथा विकास के नाम पर केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर लिखित है। ऐसे में  सीएम धामी  का कथन कि सरकार जोशी मठ को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। सरासर झूठ है, इसमें तनिक सच्चाई नहीं है। क्योंकि समय रहते सीएम ने जोशीमठ को बचाने के व्यापक प्रबंध नहीं किए और अब विनाश की कगार पर खड़े जोशीमठ को बचाने का प्रयास करने की नौटंकी कर रहे हैं। स्वामी शिवानंद ने कहा कि  टिहरी बांध को बनाने के लिए टिहरी शहर को पूरा उजाड़ दिया गया। इसके लिए कितने जंगल काटे गए, कितनी परेशानी हुई, यह सब जानते हैं। इस कड़ी में अब योजनाओं को बनाने के लिए जोशीमठ जैसे पवित्र तीर्थ स्थल और सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट कर दिया। स्वामी शिवानंद ने कहा कि अब हरिद्वार की बारी है। हरिद्वार चंडी और मनसा पहाड़ियों के बीच में है। कहा जाता है कि यहाँ के पत्थर जो हैं वो शिवजी की जटाएं हैं। यहाँ की जमीन को थोड़ा खोदेंगे तो पत्थर मिलेगा। तो इसलिए इस पत्थर को बचाना सर्वथा जरूरी है। स्वामी शिवानंद ने कहा कि गंगाजी के पत्थर शिवतुल्य हैं और अब भी नहीं समझें तो परिणाम क्या होगा वो भी जान लें। उन्होंने कहा कि परिणाम यह होगा कि पत्थर चुनते जाएंगे बिना किसी वैज्ञानिक आधार के। ऐसे में ये तथाकथित वैज्ञानिकों के विषय में क्या कहा जाए। यहाँ का जो वन अनुसंधान संस्थान है जिसके एक वैज्ञानिक हैं परमानंद कुमार, वह ऐसे रिपोर्ट बनाते हैं जिसका कोई आधार नहीं है और परिणामस्वरूप हरिद्वार में 100 से अधिक स्टोन क्रेशर है। अगर हरिद्वार में नीचे से पत्थर को हटाया जाएगा, तो ऊपर से पहाड़ भी गिरेंगे। और जब ऊपर से जल की तेज बौछार आएगी तो मिट्टी को बहाकर ले जाएगी। अभी जो मिट्टी बचती है, किनारा बचता है, तो ऊपर के पहाड़ में वहीं बचती है जहाँ पत्थर रहता है। उस पत्थर को निकाल लेंगे तो एक दिन ये हरिद्वार को ही बहा कर ले जाएगी। इस बात को ठीक से समझ जाएं। उन्होंने कहा कि हरिद्वार के अधिकारियों ने मछली पालन के नाम पर दर्जनों बड़े-बड़े तालाब खुदवा दिए। लेकिन वास्तव में उन्होनें तालाब नहीं खुदवाया, 40-40 फीट नीचे गड्ढे कर दिए। अब इसमें मछली पालन के लिए जब एक केंद्रीय दल आयी, तो उन्होनें रिपोर्ट किया कि इसमें मछली पालन हो ही नहीं सकता है क्योंकि जो मछली पालन के लिए तालाब होता है उसकी एक सीमित गहराई होती है। अब यहाँ तो मछली पालन उद्देश्य था नहीं, यहाँ तो उद्देश्य था खनन कर क्रेशर वाले को माल पहुँचाना। हरिद्वार वासी इस बात को जान लें कि यदि एक भी पत्थर उठता है तो वह हरिद्वार के अस्तित्व के खतरे में एक लकीर खींचता जाता है। जोशीमठ की घटना एकाएक थोड़ी हो गयी। इससे पहले जोशीमठ में खोदते-खोदते अंदर पानी का रिजर्वायर था, उसको खोद दिया था, और वो पानी बहता रहा, वही अभी तक बह रहा है। एक भी बात जो उत्तराखंड में घटी है, उसे हमने दूर से ही पहले से ही देखा है। हमने बात कही है, इन्होनें माना नहीं है और परिणाम भुगता है। धामी जी के लिए बढ़िया हो गया,लोग जोशीमठ से हटेंगे,विस्थापन होगा, आपलोगों को सेन्टर से करोड़ो का पैकेज मिलेगा, आपलोग बाटेंगे, आपके अधिकारी लेंगे, आपका भी तो पॉकेट गरम होगा ही। लेकिन प्रकृति यह भी देख रही है कि आप क्या कर रहे हैं, इसलिए आप पर भी डंडा चलेगा। हरिद्वारवासी भी यह समझ जाएं कि हरिद्वार को नष्ट करने में आपका भी बहुत योगदान है। हरिद्वार में गंगाजी में एक भी मछली नहीं है। हरिद्वार का गंगाजल अब स्नान योग्य नहीं है। जितने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं,वे सभी क्लोरीन छोड़ते हैं, इसलिए छोटी मछलियाँ तो एक भी नहीं है और एनएमसी में रिपोर्ट चला जाता है कि गंगा में मछलियों की संख्या बढ़ गयी। इसलिए ऐसा जब शासन होगा तो परिणाम भुगतना होगा।