पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के तीसरे दिन वरिष्ठ विद्वानों ने अनुभव साक्षा किए


 हरिद्वार। ‘वैदिक विज्ञान’ पर चल रहे पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के तीसरे दिन संस्कृत के जाने माने वरिष्ठ आचार्यों ने अपने विचार व अनुभव प्रतिभागियों से साझा किया। आज 8वें विश्व योग दिवस के अवसर पर सभी प्रतिभागियों ने प्रातःकाल स्वामी रामदेव के सान्निध्य में योग का अभ्यास किया एवं स्वस्थ जीवन व समग्र व्यक्तित्व विकास हेतु प्रतिदिन योग करने का संकल्प लिया। सैद्धान्तिक सत्र से पूर्व पतंजलि वि.वि. के संस्कृत आचार्य डॉ0 गौतम ने संस्कृत सम्भाषण की कला पर चर्चा की एवं सामान्य संस्कृत व्याकरण से अवगत कराया। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता काशी के उद्भट विद्वान प्रो0 ब्रजभूषण ओझा का वि.वि. के आचार्य स्वामी मित्रदेव ने पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत-अभिनन्दन किया। प्रो0 ओझा द्वारा ‘न्याय दर्शन में प्रमाण मीमांसा’ पर गहन चर्चा के क्रम में प्रमाण,ज्ञान,आत्मतत्व आदि शब्दावली की सरल व सहज व्याख्या प्रस्तुत की गयी। उन्होंने न्याय दर्शन को भारतीय दर्शनों में सबसे महत्वपूर्ण एवं सर्वाधिक उपकारक दर्शन बताया। द्वितीय सत्र में ‘काव्य शास्त्र में शब्द शक्ति’ विषय पर संस्कृत विभागाध्यक्ष,केन्द्रीय संस्कृत वि.वि.,(देवप्रयाग परिसर) के मूर्धण्य आचार्य डॉ0 विजय पाल शास्त्री द्वारा सारगर्भित व्याख्यान सम्पन्न हुआ जिसमें प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं के समाधान भी दिये गये। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि शब्द की शक्ति अपरिमित होती है तथा व्याकरण सबको प्रकाशित व पवित्र करने वाला साधन है। इस आयोजन के संयोजक प्रति-कुलपति प्रो0महावीर अगवाल ने इस अवसर पर उपस्थित आचार्यों को दर्शन पढ़ने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि अध्यापक बनना एवं आचार्य धर्म का निर्वहन करना कठिन है लेकिन एक आचार्य अनवरत परिश्रम व स्वाध्याय से आदर्श अध्यापक बन सकता है। इस कार्यक्रम की सह-संयोजिका एवं वि.वि. की कुलानुशासिका प्रो.साध्वी देवप्रिया ने अध्यापक की महिमा पर प्रकाश डालते हुए अपने महत्वपूर्ण अनुभव साझा किया। उन्होंने सभी आचार्यों से अपने ज्ञान को अनवरत अद्यतन करने का मार्गदर्शन दिया एवं कहा कि ज्ञान के परिष्कार से कर्म स्वतः परिष्कृत होता चला जाता है। इस ज्ञान प्रवाह के तृतीय दिवस का सफल संचालन स्वामी आर्षदेव व डॉ0 अंजू त्यागी द्वारा किया गया।