हरिद्वार। उत्तरी हरिद्वार स्थित सर्वानन्द घाट से जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी का संदेश लेकर संत जागृति यात्रा आरम्भ हुई। प्रथम चरण में यह यात्रा सम्पूर्ण हिंदीभाषी क्षेत्र में जाएगी और सभी धार्मिक मठ-मंदिरों और आश्रमों तक संत जागृति संदेश देगी। दूसरे चरण में यह यात्रा दक्षिण भारत जाएगी। यह यात्रा अपने अंतिम चरण में हरिद्वार के संतों के दर्शन करेगी और उन्हें पूरे देश के संतों से हुए विचार विमर्श के बारे में जानकारी देगी। शुक्रवार को प्रेस वार्ता कर महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी ने जानकारी देते हुए बताया कि संत जागृति यात्रा में मुख्य रूप से स्वामी अमृतानंद, बालयोगी ज्ञाननाथ, स्वामी कृष्णानंद गिरी, यति कृष्णानंद सरस्वती तथा अन्य संत हैं। यात्रा में संत सनातन धर्म और सनातन धर्म के मानने वालों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का आग्रह करेंगे। सनातन की रक्षा के लिये ठोस रणनीति बनाने का आग्रह करेंगे। कहा कि आज हमारे समाज को एक जाति के रूप में ढालने की आवश्यकता है। एक जाति वह होती है जिसका एक सर्वमान्य धर्मानुशासन होता है। सर्वमान्य धर्मानुशासन के लिये सर्वमान्य धर्म पुस्तक चाहिये। यह पुस्तक ऐसी होनी चाहिये जो हमें स्पष्ट रूप से यह धार्मिक आदेश दे कि एक सनातन धर्मी के रूप में हमे यह अवश्य ही करना है तथा यह कभी भी तथा किसी भी कीमत पर नहीं करना है। ऐसे किसी स्पष्ट धर्मानुशासन के अभाव में चालाक तथा स्वार्थी तत्व हममें विभिन्न प्रकार से मतभेद पैदा करके अपनी स्वार्थपूर्ति करके समाज को विनाश की तरफ धकेल देते हैं। हमारी अब तक कि कमी यही है कि हमारे पास अभी तक कोई सर्वमान्य धर्मपुस्तक नहीं है। यह धर्मपुस्तक हमारे सर्वमान्य महापुरुष श्रीराम,श्रीकृष्ण तथा श्रीपरशुरामजी के जीवन के आधार पर ही तैयार की जा सकती है क्योंकि महापुरुषों का जीवन ही हम सबको हमारे कर्तव्यपथ का बोध करवा सकता है। यदि सनातन धर्मी समाज के दिशानिर्देश के लिये एक ऐसी सर्वमान्य पुस्तक यदि तैयार हो जाती है तो निकट भविष्य में हम सनातन धर्मी भी एक जाति के रूप में धार्मिक रुप से संगठित हो जाएंगे तथा तब हम किसी भी धार्मिक या सामाजिक संकट से हम न केवल लड़ सकेंगे बल्कि संकट को समाप्त करके मानवता की रक्षा करने में भी सक्षम हो जाएंगे। यात्रा को रवाना करते हुए महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी जी ने कहा कि यह छोटी सी साधारण यात्रा सनातन धर्म और विश्व इतिहास पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ेगी। जो संदेश यह यात्रा आज मां गंगा के तट से लेकर जा रही है, उसके महत्व को नहीं समझा गया तो सनातन धर्म को बचाना असम्भव हो जाएगा। उन्होंने सभी आदरणीय सन्तों से इस यात्रा को आशीर्वाद, सहयोग और समर्थन देने का आग्रह किया।