मानव के अस्तित्व से लेकर वर्तमान काल तक ललित कलाओं का विशेष महत्व

 


हरिद्वार। हर्ष विद्या मंदिर (पी.जी. ) कॉलेज रायसी में चित्रकला विभाग द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में बदलते परिवेश में ललित कलाओं की भूमिका विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का शुभारंभ महाविद्यालय के प्रबंधक डा.केपी सिंह,उपाध्यक्ष डा.प्रभावती ,सचिव डा.हर्ष कुमार दौलत, प्राचार्य राजेशचंद्र पालीवाल, मुख्य अतिथि डा.आर.एस. पुंडीर लखनऊ, सुश्री विजय रानी भारद्वाज, डीएवी कालेज देहरादून के डा.हरिओम शंकर, एसएसडी कालेज रूड़की डा. अर्चना चैहान द्वारा संयुक्त रुप से मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर किया गया। कॉलेज के प्राचार्य डा.राजेश चंद्र पालीवाल बुके व मोमेंटो देकर सभी अतिथीयों का स्वागत किया। आईसीएसएसआर नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डा.नीलिमा गुप्ता ने ललित कला की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मानव के अस्तित्व से लेकर वर्तमान काल तक ललित कलाओं का विशेष महत्व है। ललित कलाएं मानव जीवन को अनुशासित बनाती हैं, मानव को सामाजिक प्राणी के रूप में रहना सिखाती हैं, आपसी संबंधों में बांधे रखती हैं। मुख्य वक्ता डा.आर.एस. पुंडीर ने मुगल काल से लेकर आधुनिक काल तक ललित कला का महत्व किस प्रकार से दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है ,किस प्रकार ललित कलाओं का देश की आजादी एवं संस्कृति विरासत को सवारने में योगदान हैं पर प्रकाश डाला। सुश्री विजयलक्ष्मी भारद्वाज ने बदलते परिवेश में ललित कला का महत्व किस प्रकार बढ़ रहा है पर प्रकाश डालते हुए बताया कि अभिव्यक्ति की आजादी वास्तव में ललित कला की ही देन है। ललित कलाओं ने मूर्तिकला के माध्यम से व अन्य माध्यम से संस्कृति और धर्म को जीवित रखा है। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उप जिलाधिकारी लक्सर गोपाल राम बेनीवाल ने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव भारत सरकार का एक महत्वकांक्षी कार्यक्रम है। जिसे देश के सभी विभागों द्वारा अपने अपने तरीके से मनाकर आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले देश के वीर सपूतों को नमन करके मंथन किया जा रहा है कि हमने 70 वर्षों में क्या खोया क्या पाया और जो कमियां हैं। कालेज के सचिव डा.हर्ष कुमार दौलत ने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव हम मना रहे हैं। उसे मनाने का उद्देश्य तभी साकार होगा। जब हम उन शहीदों को नमन करें, उनका आचरण करें। जिन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। प्राचार्य डा.राजेश चन्द्र पालीवाल ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम संयोजक डा.प्रीति गुप्ता को बधाई देते हुए कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों से जो निष्कर्ष निकलकर आता है। वह कहीं ना कहीं शिक्षा को एक दिशा प्रदान करता है। सेमिनार के तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए डा.हरिओम शंकर ने बदलते परिवेश में ललित कलाओं की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए ललित कलाओं से संबंधित पहलुओं को समझाया। डा.अर्चना चैहान एसोसिएट प्रोफेसर ने  बताया कि ललित कलाएं हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। पृथ्वी पर निवासरत जो जनमानस है। जिनके माध्यम से हम अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। राष्ट्रीय सेमिनार के प्रथम दिवस पर डा.केपी तोमर, कुलदीप सिंह, डा.प्रमोद कुमार निलेश, सोपान, सीमा गहलोत, रीना वाजपेई,,हुकम सिंह ,जोतना, किरण, प्रदीप, मनोज छोकर,डा.पूनम चैधरी, डा.अजीतराव, रणवीर सिंह,डा.मंजू रानी, डा.शिल्पी पाल डा.प्रिया प्रधान,डा.सुरजीत कौर ने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी का संचालन डा.वर्षा रानी ने किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी में डा.नीटू राम,डा.प्रशांत कुमार,ललित कुमार,स्मृति कुक्षाल, डा.सारिका माहेश्वरी, अक्षय गौतम, प्रियंका, डा.नेहा रानी, राहुल कुमार, डा.हेमंत कुमार, डा.विक्रम सिंह, डा.रणवीर कुमार ,डा.अंजू, डा.मुरली डा.प्रदीप कुमार,डा.इकराम,डा.अलका हरित, डा.रश्मि नॉटियाल, डा.सरला भरद्वाज, डा.मीनू सैनी, डा.दुर्गा रजक, डा.विकास तायल आदि उपस्थित रहे।