उत्तराखंड में मकर सक्रांति के दिन गिंदी के मेले की जानकारी दी

 हरिद्वार। मानव अधिकार संरक्षण समिति की कनखल नगर अध्यक्षा रेखा नेगी ने उत्तराखंड में मकर सक्रांति के दिन गिंदी के मेले की जानकारी दी। उन्होने बताया कि हर साल मकर संक्रांति के दिन पौड़ी गढवाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक के थल नदी और डाडामंडी में गिंदी का मेला लगता है, मकर संक्रांति के दिन यहां रग्बी जैसा खेल खेला जाता है, जिसको व्यास की चपटी चमड़े की गेंद से खेला जाता है, छीना-झपटी में जो पक्ष ताकतवर होता है वह खेल जीत लेता है उन्होने इस मेले की बारे में विस्तार से जानकारी देते हुये बताया कि डाडामंडी मेले की शुरुआत बौंठा गांव के छवाण राम तिवाड़ी ने सन् 1877 में की थी। पेशे से कारोबारी छवाण राम की तीन पत्नियों में से एक का मायका डबरालस्यूं में था, यह गांव छल नदी गिंदी से ज्यादा दूर नहीं था, वह हर साल थल नदी गिंदी मेला जाया करती थीं, एक बाक छवाण राम का मन भी हुआ कि गिंदी मेला देखा जाए, क्योंकि उनकी पत्नी मेले की बहुत तारीफ किया करती थीं। इसी बहाने उन्हें अपने मायके वालों से मिलने का मौका भी मिल जाया करता था। छवाण राम तिवाड़ी थल नदी गिंदी मेला देखकर बहुत प्रभावित हुए और अगले ही मकर संक्रांति को अपने यहां डाडामंडी में गिंदी मेले का आयोजन करवाया, तब से ही यह मेला किया जाता रहा है। अब यह मेला विभिन्न क्षेत्रों में लगाया जाता है। वही दूसरी ओर उत्तराखंड में मकर संक्रांति को घुघुतिया संक्रांति या पुस्योड़िया संक्रांति भी कहते हैं। उत्तराखंड में इसके अन्य नाम मकरैण, उत्तरैण, घोल्डा, घ्वौला, चुन्यात्यार, खिचड़ी संक्रांति, खिचड़ी संगरादि भी हैं। कोविड के कारण पिछले वर्ष मेले का आयोजन नहीं हो सका। मानव अधिकार संरक्षण समिति की उत्तराखंड पश्चिम के प्रांतीय अध्यक्षा नीलम रावत ने बताया कि हल्द्वानी के हीरानगर स्थित उत्थान मंच में पिछले करीब 40 वर्षों से धूमधाम से 14 जनवरी को उत्तरायणी पर्व मनाया जाता है। इसे ‘घुघुतिया त्योहार’ भी कहा जाता है। उन्होने बताया कि युवा पीढ़ी अब गढ़वाल के संस्कारों को भूलती जा रही है, इस वजह से उनका मकसद है कि इस मेले के जरिए वह ज्यादा से ज्यादा युवाओं को गढ़वाल की संस्कृति के बारे में बता सकें उन्होने बताया कि 1982 में उत्थान मंच में उत्तरायणी मेले का पहली बार आयोजन किया गया था। चार दशक बाद भी पूरे रीति-रिवाजों के साथ इस त्योहार को मनाया जाता है उत्तरायणी मेले का मुख्य उद्देश्य है कि युवा पीढ़ी गढ़वाल की संस्कृति को भूले नहीं. आने वाली पीढ़ी को गढ़वाल की संस्कृति से वाकिफ कराने के लिए हर साल उत्तरायणी का मेला लगाया जाता है।