निरंजनी अखाड़े का बड़ा फैसला स्वामी प्रज्ञानानंद गिरी महाराज अखाड़े से निष्कासित

 हरिद्वार। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के आचार्य महामण्डलेश्वर होने का दावा कर रहे स्वामी प्रज्ञानानंद गिरी महाराज के दावे के खारिज करते हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरी महाराज ने कहा कि स्वामी प्रज्ञानानंद गिरी महाराज की निष्क्रियता के चलते उन्हें पूर्व में ही पद से हटाया जा चुका है। उनके द्वारा अखाड़े पर लगाए जा रहे सभी आरोप बेबुनियाद हैं। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी में पत्रकार वार्ता के दौरान श्रीमहंत नरेंद्र गिरी ने उन्हें अखाड़े से निष्कासित करने की घोषणा करते हुए कहा कि स्वामी प्रज्ञानानंद गिरी महाराज को वरिष्ठ संतजनों की उपस्थिति में आचार्य महामण्डलेश्वर पद पर विराजमान किया गया था। लेकिन पद ग्रहण करने के बाद से ही वे लगातार अखाड़े के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति निष्क्रिय बन रहे। उनकी निष्क्रियता को देखते हुए अखाड़े के संतों ने व्यापक विचार विमर्श कर किसी अन्य विद्वान संत को आचार्य महामण्डलेश्वर पद सौंपने का निर्णय लिया। स्वामी प्रज्ञानानंद गिरी महाराज को इस संबंध में अवगत भी कराया गया। लेकिन वे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लगातार निष्क्रिय ही बने रहे। उन्होंने अखाड़े से कोई संपर्क तक नही किया। अन्य सभी अखाड़ों से भी राय लेने उपरांत ही विद्वान व प्रतिष्ठित संत स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज को अखाड़े का आचार्य महामण्डलेश्वर बनाने का निर्णय हुआ। अखाड़ों में आचार्य महाण्डलेश्वर बनाने की एक लंबी प्रक्रिया है तथा यह अखाड़ों का विशेष अधिकार भी है। अब जब अखाड़े के नए आचार्य महामण्डलेश्वर के अभिषेक की तैयारियां चल रही हैं तो स्वामी प्रज्ञानानंद गिरी महाराज इसमें व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास करते हुए अखाड़े पर झूठे व बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। उनके कृत्य को देखते हुए उन्हें अखाड़े और संत समाज से निष्कासित किया गया है। आनंद पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरी महाराज ने कहा कि अखाड़ों की परंपरा है कि आचार्य पद पर अभिषेक होने के बाद आचार्य महाण्डलेश्वर को अखाड़े के इष्ट भगवान की पूजा अर्चना करना आशीर्वाद लेना होता है। इसके बिना पद पर अभिषेक की प्रक्रिया पूरी नहीं होती। लेकिन निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर बनने के बाद स्वामी प्रज्ञानानंद गिरी महाराज न तो अखाड़े के इष्ट भगवान की पूजा अर्चना करने आए ना ही उन्होंने अखाड़े के संतों से कोई संपर्क किया। ऐसे में निरंजनी अखाड़े के संतों का निर्णय उचित और अखाड़ों की पंरपरा के अनुसार ही है। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज ने कहा कि अखाड़ों की अपनी परंपराएं हैं। उनमें आचार्य महामण्डलेश्वर पद पर अभिषेक होने के बाद अखाड़े के इष्टदेव की पूजा अर्चना करना सबसे महत्वपूर्ण है। लेकिन आचार्य महामण्डलेश्वर बनने के बाद स्वामी प्रज्ञानानंद ने अखाड़े की किसी परंपरा का पालन नहीं किया। स्वामी प्रज्ञानानंद गिरी महाराज के अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर पद पर विराजमान होने के डेढ़ वर्ष की अवधि में अखाड़े के कई संत ब्रह्मलीन हो गए। लेकिन उन्होंने किसी संत को श्रद्धांजलि देना तक उचित नहीं समझा। ऐसे में उनकी निष्क्रियता के चलते ही अखाड़े के लिए नए आचार्य महाण्डलेश्वर की आवश्यकता को देखते हुए पद के लिए एक विद्वान संत की तलाश की गयी। इस दौरान श्रीमहंत रामरतन गिरी, महंत मनीष भारती, महंत गंगा गिरी, महंत राजेंद्र भारती, महंत नरेश गिरी, महंत नीलकंठ गिरी, महंत ओंकार गिरी, महंत लखन गिरी आदि मौजूद रहे।