प्रत्येक पर्व लोक कल्याण की प्रेरणा से ओत प्रोत होता है- विज्ञानानंद सरस्वती

हरिद्वार।  गीता ज्ञान के प्रणेता महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि पैसा पाप की जड़ होता है और आसुरी संपदा अधिक समय तक नहीं रह सकती ,जिस व्यक्ति के पास पाप की कमाई बढ़ती है उसके हृदय से संयम और साधना समाप्त हो जाती है। सनातन धर्म में पर्वों की प्रधानता है तथा प्रत्येक पर्व लोक कल्याण की प्रेरणा से ओत प्रोत होता है वे आज शरद पूर्णिमा के प्रसाद वितरण के अवसर पर भक्तों को आशिर्बचन दे रहे थे। गीता विज्ञान आश्रम में भक्तों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि समाज में बढ़ती चरित्रहीनता कलयुग के अंतिम चरण की परिचायक है तथा ब्रह्मविद्या का लोप होने के साथ ही भौतिक विद्या की ओर समाज का रुझान बढ़ा है जो व्यक्ति को वासना की तरफ ले जाती है। सात्विकता समाज से समाप्त हो रही है और तामस का भाव बढ़ रहा है, धन और भोग के लिए पाप हो रहे हैं जिस की भविष्यवाणी वेद ,गीता और बाइबल के साथ ही अनेक ऋषि ,मुनि एवं सूफी संतों ने पहले ही कर दी थी। साधना, संयम, दान और ध्यान को जीवन का आधार बताते हुए उन्होंने कहा कि विवाह करने का सभी को अधिकार नहीं होता है लेकिन सृष्टि के संचालन के लिए पांच दानों को महादान की श्रेणी में रखा गया है। ब्रह्म विद्या,सोना, गोदान ,तथा कन्यादान से ही संस्कारित समाज का सृजन होता है जिसकी प्रेरणा संत महापुरुषों के सानिध्य से प्राप्त होती है। विश्व में बढ़ रही आसुरी शक्तियों का शमन होगा तथा मानवता का युग आएगा क्योंकि युग परिवर्तन सृष्टि का नियम है तथा के कलयुग के बाद सतयुग का आगमन होता है।