हरिद्वार। रेलवे रोड़ स्थित श्रीगरीबदासीय आश्रम में आयोजित श्रीमद्भावगत कथा के छठे दिन कथाव्यास स्वामी रविदेव शास्त्री ने महारास लीला का वर्णन करते हुए कहा कि महारास में जीवात्मा और परमात्मा का मिलन हुआ। जीव और परमात्मा तत्व ब्रह्म के मिलन को ही महारास कहते हैं। महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाये जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं जो भी ठाकुरजी के इन गीतों को भाव से गाता है। उसका जीवन भव सागर से पार हो जाता है। कथाव्यास स्वामी रविदेव शास्त्री ने कहा कि श्रीमदभागवत का अर्थ है भगवान में लीन हो जाना। कथा सुनने से मन की व्यथा दूर हो जाती है। हृदय से कथा सुनेंगे तो आप को खुद ही साक्षात भगवान की अनुभूति होगी। शरीर नश्वर है,इसलिए इसे भागवत भजन में लगाना ही उत्तम प्रवृत्ति है। भागवत भजन के जरिए हम सत्य स्वरूप परमात्मा का ध्यान करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण और रूक्मणी विवाह का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि रूक्मणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकती। स्वामी हरिहरानन्द,गौ गंगाधाम सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी निर्मल दास एवं स्वामी दिनेश दास ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जब जीव में अहंकार आ जाता है तो वह भगवान से दूर हो जाता है। अहंकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। रावण,कंस आदि असुरों ने अंहकार के मद में अपना विनाश किया। इसलिए अहंकार आदि अवगुणों से दूर रहकर भागवत भक्ति करें। भागवत भक्ति से ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा। मुख्य यजमान दर्शन कुमार वर्मा,माता सुदेश,रमेश लुथरा,रितु बहल,सार्थक,कमलेश,विक्रम लूथरा,नितिन लूथरा,कनिका,सुगम,डा.संजय वर्मा ने सभी संत महापुरूषों का स्वागत कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर स्वामी परमात्मदेव,स्वामी निर्मल दास,स्वामी दिनेश दास,स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि,डा.संजय वर्मा,लोकराज, विजय शर्मा,स्वामी ज्ञानानंद,स्वामी कृष्णानंद सहित श्रद्धालु उपस्थित रहे।
जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही महारास है-स्वामी रविदेव शास्त्री